शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट । बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट ॥

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आया था किस काम को, तु सोया चादर तान ।
सुरत सम्भाल ए गाफिल, अपना आप पहचान ॥




हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट ।
बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट ॥

 

साधुऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥


माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय ।
भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय ॥



साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥







जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥



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नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग ।
और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग ॥


जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल ।
तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल ॥



जहाँ आपा तहाँ आपदां, जहाँ संशय तहाँ रोग ।
कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग ॥



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साधुऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥


साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥


जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥


उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥


सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥


साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥ 



टी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय ॥


रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥



उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥


सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥


साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥ 


माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।  

आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥ 

 
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥ 

 
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥


बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥


































कबीरा जपना काठ की, क्या दिख्लावे मोय । ह्रदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ॥


अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक साथ ।
मानुष से पशुआ करे दाय, गाँठ से खात ॥


बाजीगर का बांदरा, ऐसा जीव मन के साथ ।
नाना नाच दिखाय कर, राखे अपने साथ ॥


अटकी भाल शरीर में तीर रहा है टूट ।
चुम्बक बिना निकले नहीं कोटि पटन को फ़ूट ॥


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कबीरा जपना काठ की, क्या दिख्लावे मोय ।
ह्रदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ॥


पतिवृता मैली, काली कुचल कुरूप ।
पतिवृता के रूप पर, वारो कोटि सरूप ॥


बैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार ।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ॥


हर चाले तो मानव, बेहद चले सो साध ।
हद बेहद दोनों तजे, ताको भता अगाध ॥








राम रहे बन भीतरे


गुरु की पूजा ना आस ।
रहे कबीर पाखण्ड सब


, झूठे सदा निराश ॥


जाके जिव्या बन्धन नहीं,


ह्र्दय में नहीं साँच ।
वाके संग न लागिये,


खाले वटिया काँच ॥


तीरथ गये ते एक फल,

 


सन्त मिले फल चार ।
सत्गुरु मिले अनेक फल,


कहें कबीर विचार ॥ 

 

 


सुमरणसेमनलाइए,

 


जैसेपानीबिनमीन ।

 
प्राण तजे बिन बिछड़े

 


सन्त कबीर कह दीन ॥

कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि कर तन हार । साधु वचन जल रूप, बरसे अमृत धार ॥


क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह ।
साँस-सांस सुमिरन करो और यतन कुछ नांह ॥ 

 

गारी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट और मींच ।
हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नींच ॥




रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥ 

 
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥


बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥






कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि कर तन हार ।
साधु वचन जल रूप, बरसे अमृत धार ॥ 

 

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय ।
यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय ॥ 

 

मैं रोऊँ जब जगत को, मोको रोवे न होय ।
मोको रोबे सोचना, जो शब्द बोय की होय ॥ 

 

सोवा साधु जगाइए, करे नाम का जाप ।
यह तीनों सोते भले, साकित सिंह और साँप ॥



दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय ।
बिना जीव की हाय से, लोहा भस्म हो जाय ॥ 

 

दान दिए धन ना घते, नदी ने घटे नीर ।
अपनी आँखों देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥ 

 

दस द्वारे का पिंजरा, तामे पंछी का कौन ।

रहे को अचरज है, गए अचम्भा कौन ॥ 

 

ऐसी वाणी बोलेए, मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ॥


पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय । एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥

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पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥


--> धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥ 

 
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥ 

 








कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥







शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान ।
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ॥



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दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार ।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥

आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर ।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर ॥

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥

माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख ।
माँगन से तो मरना भला, यह सतगुरु की सीख ॥






माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥






माबडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥

 

 

चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥  

 
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥ 

 
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥ 

 
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥ 

 
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥ 

 
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥ 

 
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥




दुख में सुमरिन सब करे, सुख मे करे न कोय । जो सुख मे सुमरिन करे, दुख काहे को होय ॥




 सत बराबर तप नहीं, -हजयूठ बराबर पाप,

ताके हृदय सांच है, जाके हृदय आप ।


 
राजा देश बड़ौ परपंची,

 रैयत रहत उजारी,

इतते उत उतते इतरहु,

 यम की सौ-सजय़ सवारी,


घर के खसम

 बधिक वे राजा,

परजा क्या छोंकौं,

 विचारा ।


घन गरजै, दामिनि दमकै, बंूदैं बरसैं, -हजयर लाग गए

हर तालाब में कमल खिले, तहां भानु परगट भए ।

दिन को रोजा रहत है, राति हनत है गाय ।

यहा खून वै वंदगी, क्यों कर खुशी खोदाय ।


तू बाम्हन में कासी का जुलाहा, बू-हजयौ मोर गियाना ।

सिंकदर लोदी का कोपभोजन बना ।

                     









सत बराबर तप नहीं, -हजयूठ बराबर पाप,
ताके हृदय सांच है, जाके हृदय आप ।


राजा देश बड़ौ परपंची,
 रैयत रहत उजारी,
इतते उत उतते इतरहु,
 यम की सौ-सजय़ सवारी,
घर के खसम
 बधिक वे राजा,
परजा क्या छोंकौं,
 विचारा ।

घन गरजै, दामिनि दमकै, बंूदैं बरसैं, -हजयर लाग गए
हर तालाब में कमल खिले, तहां भानु परगट भए ।





दिन को रोजा रहत है, राति हनत है गाय ।
यहा खून वै वंदगी, क्यों कर खुशी खोदाय ।


तू बाम्हन में कासी का जुलाहा, बू-हजयौ मोर गियाना ।

सिंकदर लोदी का कोपभोजन बना ।
दर की बात कहो दरवेसा

बादशाह है कौन भेसा

कहा कूच कर हि मुकाया,



मैं तोहि पूछा मुसलमाना


लाल जर्द का ताना बाना
 
कौन सुरत का करहु सलामा ।
भाई रे दुई जगदीश कहां से आया?

 कहु कौने भरमाया
 
अल्लाह, राम, करीमा, केशव,

 हरि हजरत नाम धराया ।

गहना एक कनक ते गहना,

यामे भाव न दूजा

कहन सुनन को दुई करि थापे ।

 इक निमाज एक पूजा

वहीं महादेव वही मुहम्मद ।

 ब्रम्हा आदम कहिए

को हिंदू को तुरक कहावे
,
 एक जिमीं पर रहिए ।

काजी करहु तुम कैसा,


 घर घर जब हकरा बहुत बैठा।


बकरी किंह फरगाया,

 किसके कहे तुम छुरी चलाया ।


































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// शादी का रजिस्ट्र्ेशन //

सभी धर्मो के लिये शादी का रजिस्टे्र्ेशन अनिवार्य कर दिया गया है

    केन्द्र सरकार ने जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण कानून में संसोधन के द्वारा यह शामिल किया है कि सुप्रिमकोर्ट ने 2006 में सभी धर्मो के लिये विवाह पंजीकरण कानून बनाने के निर्देश दिये थे । सीमा बनाम अश्विनी कुमार के मामले में वे किसी भी धर्म से संबंधित हों । सभी का विवाह पंजीयन अनिवार्य होना चाहिये ।

    शादी के रजिस्ट्र्ेशन से यह लाभ होगा कि:-

1-    वैवाहिक मामलों में महिलाओं को उत्पीडन से बचाया जा सकेगा ।

2-    बाल विवाह जैसी समस्याओं से भी निजात मिलेगी ।

3-    संबंधित पक्षों को अंधेरे में रख कर होने वाली शादियों पर पावंदी लगेगी

4-    गैर कानूनी बहुविवाह पर रोक लगाने में मदद मिलेगी ।

5-    विवाह के लिए न्यूनतम आयु की पावंदी लागू की जा सकेगी ।

6-    विवाहित स्त्रियों को अपने ससुराल मं रखने का हक हांसिल करने में     आसानी होगी ।

7-    महिलाओं को विवाह का सबूत देने के लिए भटकना नहीं होगा ।

    अब यह होगा

    नये कानून के आने पर सभी धर्मोके लोगों के लिए एक ही कानून जन्म, मृत्यु एवं विवाह पंजीयन अधिनियम के तहत्शादी पंजीकृत की जाएगी ।इससे उनके धार्मिक अधिकारों और प्रक्रियाओं पर कोई प्रभाव नहीं पडेगा ।शादी संबंधी किसी भी विवाद का निपटारा अपने अपने धर्मो क विवाह कानूनों के तहत्ही होगा ।

/देश मंे महिलाओं की स्थिति //

    पूरे देश में बेटियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं हैं । बल्कि कईजगह तो हालाॅत झकझोर देने वाले मिले ।ऐसे में बेटी बचाने को सिर्फ अभियान न माने । ये मानवता के लिए जरूरी है ।
   सोतः जनगणना 2011, स्वास्थ्य मंत्रालय, डबल्यू.एच.ओ. नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड व्यूरों, यूनिसेफ, मानव संसाधन विकास
मंत्रालय
    जोधपुर मंे जन्मी हैयह बच्ची लडका पाने की चाह में दो परिवार इससे किनारा करते रहे । दस दिनों तक अपनाया नहीं । लेकिन ऐसा नहीं हैकि ये कहानी सिर्फ इसी बच्च की है। इस बच्च के बहाने भास्कर ने पूरे देश में बेटियों के हालात पर नजर डाली ।

    इससे तो बेहतर हो कि मैं:-

    मिजोरम में जन्म लती । किसी राज्य के मुकाबले यही सबसे अच्छी स्थिति है । एक हजार लडको पर 971 लडकिया। हरियाणा में यह अनुपात सबसे कम है । हजार लडकांे पर 830 लडकियाॅं ।

    सुना था गुजरात में महिलाओं की स्थिति सबसे मजबूत है, लेकिन वहीं के मेहसाणा में तो मैं जन्म भी न ले पाती । एक हजार लडकों पर मेरे जैसी 760 ही हैं वहाॅ । यानी किसी एक शहर मं सबसे बुरी हाॅलत ।
   
    अच्छा है कि झारखण्ड में न जन्मी । बचपन में ही शादी कर दी जाती । सबसे ज्यादा बाल विवाह यहीं होते हैं ।

    झारखण्ड में होती ते मेरी सेहत का पता नहीं क्या हाॅल होता । सबसे ज्यादा एनीमिया की शिकार 70.6 प्रतिशत महिलाएं इसी राज्य में हैं ।

    सब कुछ ठीक रहा तो केरल में रहना चाहूंगी ।महिलाओं की औसत उम्र यहां 75 साल है ।

    राजस्थान में तो मेरी पढाई मुश्किल है । पढ सके ऐसी महिलाएं 52.7 प्रतिशत ही है । जबकि केरल में यह 91.9 है ।

    मैं यदि डाॅक्टर बनना चाहूं तो चंडीगढ में माहौल साथ देने वाला है।तभी तो वहां एक हजार की आबादी पर 7.5 महिला डाॅक्टर हैं । देश में सबसे ज्यादा बिहार में सबसे कम 0.26 हैं ।

    शादी के बाद हमारी सबसे बडी समस्या है दहेज । यू.पी. में शादी न हो तो ही अच्छा यहां हर साल दहेज के लिए सबसे ज्यादा मौतें होती हैं ।

    मेरे देश की राजधानी दिल्ली ही मेरे लिए सुरक्षित नहीं हैं ।महिलाओं पर होने वाले कुल अपराधों में एक चैथाई यहीं होते हैं ।

    मुझे त्रिपुरा से बहुत डर लगाता है । देश मं महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध यही हो रहे हैं । हालांकि बडे राज्यों में मध्यप्रदेश भी पीछे नहीं हैं ।

    देश में सबसे खतरनाक है असम में रहना । यहां पिछले पांच सालों में 7164 महिलाएं बलात्कार की शिकार हुई ।

    राजस्थान विधानसभा में हैं सबसे ज्यादा महिला विधायक  14.5 प्रतिशत । नागालैंड में एक भी नहीं ।

    देश की आबादी में हम 48.4 फीसदी हैं:-

    भगवान न करे, मुझे दिल की बीमारी हो । 22 फीसदी बेटियों को ही इसका अपचार मिल जाता है ।जबकि लडकां को 70 फीसदी ।

    दुःख तो इस बात का भी है कि हमें ठीक से खाना नहीं मिलता । तभी तो 18 से कम उम्र की 90 फीसदी बेटियेां को एनीमिया है । लडकों से कहीं ज्यादा ।

    मुझे देश से कोई शिकायत नहीं हैं, लेकिन फाइटर पायलटनहीं बन सकती । मोर्चे पर नहीं जा सकती ।जिसे वे फुल कमीशन कहते हैं ।

    मेरे लिए काॅलेज जाना बेहद मुश्किल हैं ।11 फीसदी बेटियों को ही भेजा जाता हैवहां तक ।जबकि 15 फीसदी लडकों को उच्च शिक्षा के लिए भेजा जाता है ।














      
 

दुख में सुमरिन सब करे,

 सुख मे करे न कोय ।
जो सुख मे सुमरिन करे,

 दुख काहे को होय ॥ 

 जहाँ दया तहाँ धर्म है


 जहाँ लोभ तहाँ पाप ।
जहाँ क्रोध तहाँ पाप है,

 जहाँ क्षमा तहाँ आप ॥ 

 धीरे – धीरे रे मना ,


 धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा 

, ॠतु आए फल होय ॥

कबीरा ते नर अन्ध है,

 गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है,

 गुरु रुठै नहीं ठौर ॥







माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ॥

तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय ।
कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय ॥


माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ॥


गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥


बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार ।
मानुष से देवत किया करत न लागी बार ॥


कबिरा माला मनहि की, और संसारी भीख ।
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥


सुख मे सुमिरन ना किया दु:ख में किया याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥


साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥


लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥


जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥


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बुधवार, 31 जुलाई 2013

लेखक की कलम से

                    लेखक की  कलम से

                                                 व्यंग्य लेखन से मेरा उद्देश्य लोगों का मजाक उड़ाकर उन्हें हसी का पात्र बनाकर सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करना नही है । समाज में कुछ ऐसी बातें व्याप्त है, जो आम आदमी ठगे जाने के बाद भी समझ नहीं पाता है और दिन प्रतिदिन पिसता जाता है । ऐसी बातों को अपने लेखों ओर व्यंग्यों के माध्यम  से लोगों तक पहुंचाना ही मेरा उद्देश्य रहा है । 


                                                इसके अलावा ऐसे लोगों को भी दर्पण दिखाना रहा है जो छल कपट चोरी ,बेईमानी करने के बाद भी समझते है कि उन्होने कुछ नहीं किया है और उनके बारे में लोगों को कुछ नहीं मालूम है, जबकि समाज में इसके विपरीत उल्टा असर रहता है । 


                                                      हमारा भारतीय समाज दहेज प्रथा, जातिप्रथा, धार्मिकता, अंधविश्वास, गरीबी, बेकारी आदि आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, बुराईयों से ग्रस्त है, जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित, देश का आम आदमी है और आम आदमी को ही अपने लेखों का नायक बनाकर प्रायः व्यंग्य लिखे गये हैं । जिसमें अधिक से अधिक समस्याओं को हल सहित उठाये जाने का प्रयास किया गया हैं।


                                                       आस पास में व्याप्त विषमताओं चेहरे पर चेहरे लगाये, रंग बदलते चेहरे को देखकर उन्हें सरल सीधे शब्दो में बिना लाग लपेट के व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है और व्यंग्य ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा अपने और अपनो पर चोट करके लोगो को समझाया जा सकता है ।

                                                 मुझे व्यंग्य लेखन की प्रेरणा संत कबीर, हरिशंकर, परसाई, चाणक्य, जैसे महान लोगों से मिली है ,जिन्होने अल्प शब्दो में  ही गाकर में सागर भरकर लोगों को सामाजिक विशेषताओं की ओर सोचने को मजबूर  किया है। मेरे द्वारा युवाओं में व्याप्त समस्याओं ,छेड़खानी, प्रेम, फिल्म के प्रति आकर्षण की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया गया है । वहीं प्रदूषण, मंहगाई, इलाज, बीमारी ,गरीबी के कारणो की तरफ भी लोगों का ध्यान खींचा गया है । नारी जाति में व्याप्त समस्याओं पर विचार किया गया है और समाज में व्याप्त दोहरे मापदंड आर्थिक विषमताओं का उल्ल्ख किया है।

                                                  बी.एस.सी. एम.ए. (अर्थशास्त्र) में करने के बाद पत्राचार में पत्र कारिता का एक वर्ष का कोर्स और उसके बाद एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की और इस बीच कई लेख, वयंग्य,फीचर,निबंध देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए और समस्थाओं द्वारा पुरूष्कृत भी किये गये । उसके बाद वेलेन्टाइन-डे-कानून के रूप में लोगों के मध्य किताब के रूप में आने का पहला प्रयास है
                    

kabir









कबीर एक क्रांतिकारी कवि --------------------- कबीर का मनुष्य ज्ञान की सहायता से दुर्बलताओ को मुक्त करने वाला प्राणी था जिसने बाहरी आंडबरांे का विरोध कर अपने भीतर झांककर ईश्वर की प्राप्ति की थी । कबीर के प्राणी की पहचान कुल से नही बल्कि कर्म से होती थी । यही कारण है कि उनका ईश्वर के सबंध में कहना था कि न मैं देवल में, न मै मस्जिद में, न काबे-कैलाश में, न तो कौने क्रिया कर्म में, न ही योग-बैराग में, मैं सब श्वांसों की श्वास में । महान् कबीर भारत के वे सुकरात हैं, जिन्होंने जहर के प्याले में बैठकर अमृत की वर्षा की ।

                        कबीर एक क्रांतिकारी कवि

                             संत कबीर एक महान क्रांतिकारी कवि थे। जिन्होंने बिना लाग लपेट के समाज में व्याप्त कुरीतियों, बुराईयांे को उजागर किया था। उन्होंने समाज में व्याप्त जाति, धर्म, वर्ग आदि के मध्य विद्यमान भेदभाव को बडी सहजता से व्यक्त किया था। 

                              उनकी वाणी बहुत सरल, सुन्दर, आम बोलचाल की भाषा में थी। उन्होने क्षेत्रीय भाषा अपनाकर दैनिक बोलचाल के शब्दो का प्रयोग अपनी वाणी में किया था।


                                उनके दोहा, साखी, बीजक, उलट, बंसिया आज भी शोध का विषय है। एक पंक्ति में एक ग्रंथ की बात कह देना उनकी विशेषता थी बडी आसानी से उन्होने अंधविश्वास, जातिय भेदभाव, छुआछूत, पांखड जैसी सामाजिक बुराईयो को व्यक्त किया था । यही कारण है कि आज कई कवि आकर चले गये परन्तु कबीर अपने स्थान पर अडिग हैं । उनके आसपस दुनिया का कोई कवि नहीं लगता है।



                                       कबीर के दोहो को साखी कहा जाता है । साखी शब्द साक्षी का प्रतीक है । साक्षी का अर्थ है सामने होना । महान कबीर ने अपने जीवन में जो देखा जो सुना जो अनुभव किया उसी को अपनी साखियों में व्यक्त किया, जिन्हें दोहा भी कहा जाता है । इसी कारण आज साखी हिन्दी साहित्य में ज्ञान के कोष के रूप में जानी जाती है ।



                                               भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा के प्रमुख कवि कबीर का जन्म काशी में हुआ और निर्वाण मगहर में प्राप्त हुआ । उन्होने कोई प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। आस-पास के अनुभव से ज्ञान प्राप्त किया था। आस-पास की अव्यवस्था शब्दों में व्यक्त कर महानता प्राप्त की थी ।



                                          संत कबीर भक्तिकालीन एक मात्र कवि थे जिन्होने राम-रहीम के नाम पर चल रहे पाखंड, भेद-भाव, कर्म-कांड को व्यक्त किया था। उस समय राज सत्ता, प्रभु सत्ता के नाम पर व्याप्त डर के कारण आम आदमी जो कहने से डरता था, उसे विचारक कबीर ने धूम धडाके से कहा ।



                                            दार्शनिक कबीर का आदर्श मनुष्य धर्मिक, सामाजिक भेदभाव से मुक्त प्राणी था जो पत्थर नहीं पूजता था, ईश्वर के नाम पर मुर्गे जैसी बांग नहीं देता था। छोटे-बडे सभी उसके लिए बराबर थ्ज्ञे । जो कर्मवान था, ज्ञान का पुजारी था, अपने अंदर ईश्वर को खोजता था। उसके नाम की माला नहीं फेरता था बल्कि जुबान से भक्ति करता था, वह संकीर्णताओ से दूर था।


                                    कबीर का मनुष्य ज्ञान की सहायता से दुर्बलताओ को मुक्त करने वाला प्राणी था जिसने बाहरी आंडबरांे का विरोध कर अपने भीतर झांककर ईश्वर की प्राप्ति की थी ।



                                    कबीर के प्राणी की पहचान कुल से नही बल्कि कर्म से होती थी । यही कारण है कि उनका ईश्वर के सबंध में कहना था कि न मैं देवल में, न मै मस्जिद में, न काबे-कैलाश में, न तो कौने क्रिया कर्म में, न ही योग-बैराग में, मैं सब श्वांसों की श्वास में ।



                                      कबीर जन भाषा की निकट कवि थे । सरल ढंग से कठिन चिंतन को व्यक्त करने की अद्भूत शक्ति उनमें थी । वे एक शब्द में सम्पूर्ण दर्शन ज्ञान उडेल देते थे, यही कारण हे कि दिगम्बर के गांव में क्या धुबियन का काम ’’कहने वाला कवि केवल, कबीर हो सकता है । 



                                           ज्ञान की महिमा का बखान करने वाला कबीर का कहना था कि जैसे तलवार का महत्व होता है मयान का नहीं वैसे ही साधु के ज्ञान की परख होती है, उसकी जातिकी परख नहीं होती ।


                          कबीर हिन्दी साहित्य के पहले व्यंग्यकार है जिन्होंने अपनी वाणी में सामाजिकर्, आिर्थक, धार्मिक जाति विरोधाभासों को व्यक्त किया है । यही कारण है कि वे आज व्यंग्यकारो के आदर्श है । 



        महान् कबीर भारत के वे सुकरात हैं, जिन्होंने जहर के प्याले में बैठकर अमृत की वर्षा की ।

बुधवार, 26 जून 2013

उमेश गुप्ता द्वारा प्रकाशित व्यंग्य संग्रह की सूची

       उमेश गुप्ता द्वारा प्रकाशित व्यंग्य संग्रह की सूची

 


1-    वेलेन्टाइन कानून
2-    अफसर के रिटायरमेंट का दर्द


3-    प्रेम एक रोग अनेक
4-    हड़ताल बिना जिन्दगी अधूरी
5-    कौन कहता है भूत नहीं होता
6-    इंडियन टाइम
7-    अश्लीलता
8-    चापलूसी
9-    आ बैल मुझे मार
10-    अस्पताल या पांच सितारा होटल
11-    फिल्मो में भगवान उर्फ डाक्टर
12    विज्ञापन में नारी या नारी में विज्ञापन
13-    रोड इन्सपेक्टर
14-    राम तेरी गंगा मेली
15-    बिचौलिये
16-    पुरातनी और आधुनिकतम नारी
17-    अंग्रेजी और आधुनिकता का भूत
18-    गरीब,गरीबगरीब कहां है
19-    अंधविश्वास बनाम अन्धे विश्वास
20-    युवाओं की अगाड़ी- सिनेमा में पिछाड़ी
21-    हीरो बने जीरो हिरोइन बनी विषकन्या
22-    बच्चे न होने का रोना
23-    भगवान का व्यवसायीकरण
24-    जिला बदल होने के हादसे
25-    त्यौहारों का राजा होली
26-    पेट दर्द
27-    एक्जामिनेशन- फोबिया
29-    शार्टकट
30-    गुन्डा टेक्स
31-    ज्ञान का कूड़ापन
32-    आधुनिकता का पवित्रीकरण
33-    आंख के अंधे नाम नयनसुख
34-    अंडरवर्ल्ड के अंदर क्या है?
35-    छपास की बीमारी
36-    मिस्त्री नियरै राखिए
37-    हैप्पी भारत
38-    हर मर्ज का इलाज-शिक्षा नहीं शिक्षक
39-    लोग क्या कहेगे?
40-    जानवर और नेता
41-    क्रान्ति
42-    स्वर्ग का द्वार
43-    चूहे और नेता