, अंतर ज्योति शब्द यक नारी।
हरि ब्रम्हा ताके त्रिपुरारी ।।
ते तिरिये भंग लिंग अंनता।
तेउ न जानै आदिउ अंता।
बाखीर एक विधातै कीन्हा।
चैदह ठहर पाटि सो लीन्हा।
हरि हर ब्रम्हा मंहतो नाउं।
ते पुनि तीनि बसाबल गाऊॅ।।
ते पुनि रचिनि खेड ब्रम्हाडा।
छा दर्शन छानवे पखडा।।
पेटहि काहु न वेद पढ़ाया।
सुनति कराय तुरूक नहिं आया।।
नारी मो चित गर्भ प्रसूति।
स्वांग धरै बहुतै करतूती।।
तहिया हम तुम एकै लोहू
। एकै प्राणबियापल मोहू।।
एकै जनी जना संसारा ।
कौन ज्ञानते भयो निनारा।।
भा बालक भगद्वारे आया।
भग भोगेते पुरूष कहाया ।।
अविगति की गति काहु न जानी।
एक जीभ ढ़कित कहौं बखानी।
। जो मुख होइ जीभ दश लाखा ।
तौ कोइ आय महंतो भाखा।।
सा0- कहिहं कवीर पुकारिकै,
ई लेउ व्यवहार।
एक रामनाम जाने बिना,
भव बूडि मुवा संसार।।
हरि ब्रम्हा ताके त्रिपुरारी ।।
ते तिरिये भंग लिंग अंनता।
तेउ न जानै आदिउ अंता।
बाखीर एक विधातै कीन्हा।
चैदह ठहर पाटि सो लीन्हा।
हरि हर ब्रम्हा मंहतो नाउं।
ते पुनि तीनि बसाबल गाऊॅ।।
ते पुनि रचिनि खेड ब्रम्हाडा।
छा दर्शन छानवे पखडा।।
पेटहि काहु न वेद पढ़ाया।
सुनति कराय तुरूक नहिं आया।।
नारी मो चित गर्भ प्रसूति।
स्वांग धरै बहुतै करतूती।।
तहिया हम तुम एकै लोहू
। एकै प्राणबियापल मोहू।।
एकै जनी जना संसारा ।
कौन ज्ञानते भयो निनारा।।
भा बालक भगद्वारे आया।
भग भोगेते पुरूष कहाया ।।
अविगति की गति काहु न जानी।
एक जीभ ढ़कित कहौं बखानी।
। जो मुख होइ जीभ दश लाखा ।
तौ कोइ आय महंतो भाखा।।
सा0- कहिहं कवीर पुकारिकै,
ई लेउ व्यवहार।
एक रामनाम जाने बिना,
भव बूडि मुवा संसार।।
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