क्या भरोसा
देह का, बिनस
जात छिन मांह ।
साँस-सांस
सुमिरन करो और यतन कुछ नांह
॥
गारी ही सों
ऊपजे, कलह
कष्ट और मींच ।
हारि
चले सो साधु है,
लागि चले
सो नींच ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥