आया था किस
काम को, तु
सोया चादर तान ।
सुरत
सम्भाल ए गाफिल,
अपना आप
पहचान ॥
हीरा वहाँ
न खोलिये, जहाँ
कुंजड़ों की हाट ।
बांधो
चुप की पोटरी,
लागहु अपनी
बाट ॥
साधुऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
माया छाया
एक सी, बिरला
जाने कोय ।
भगता
के पीछे लगे,
सम्मुख
भागे सोय ॥
साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
नींद निशानी
मौत की, उठ
कबीरा जाग ।
और
रसायन छांड़ि के,
नाम रसायन
लाग ॥
जो तोकु कांटा
बुवे, ताहि
बोय तू फूल ।
तोकू
फूल के फूल है,
बाकू है
त्रिशूल ॥
जहाँ आपा
तहाँ आपदां,
जहाँ संशय
तहाँ रोग ।
कह
कबीर यह क्यों मिटे,
चारों धीरज
रोग ॥
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साधुऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥
टी कहे कुम्हार
से, तु
क्या रौंदे मोय ।
एक
दिन ऐसा आएगा,
मैं रौंदूंगी
तोय ॥
रात गंवाई
सोय के, दिवस
गंवाया खाय ।
हीना
जन्म अनमोल था,
कोड़ी बदले
जाय ॥
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
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