1-पांच तत्त निज मूल है,
हम करता इन माहिं।
नख सिख ते पूरण बना,
सो फिर अंते नाहिं।।
2-हसो तो दाव परखिये,
रोवो काजर ना,
ज्यों काठे घुन खाय।।
3-संसं खायो खेत,
केत्र बर लोही भयो।
वाय जगतकी रीत,
हीरा जर कोयला भयो,
4-उपज बिनसमें सब परे,
कोई भया न थीर।
करता अपन न चीन्हई,
कासो कहें कबीर।।
5-बहुत मिले बहु भंति,
मन अनमिल सब सो रहा।
जाते जियकी पांत,
ते जग दुलर्भ पाहुना।
6-जान पूंछ कुंवा ना परे,
तजा न पुरूष विदेह।
कहे कबीर कासो कहूं,
जो छोडे झूठ सनेह।।
7-रातदिन कछु है नहीं,
सुन्य पीजरती है सूवा।
कहें कबीर ख्याल यह अटपट,
नाहीं जिया न मूवा।
8-जाने नहीं जान जग दीना,
जानते भया बिजान।
कहें कबीर बेजान को,
अबहुंक परे पहिचानंं।।
9-ग्रहन नाही पर सब जगत,
परे गरहन केरा भाग।
मै नहिं जानों पंडित कवे,
गरहन ऐहि लाग।
10-चंदा गरहन गरासिया,
ऐसे गिरहित लोग।
उग्रह होन न पावई,
दिन दिन बाढ दुबार।
11- चोखा को हम चीन्हा,
चोखा हमें न चीन्हं।
कहें कबीर वह चोर अपरबल,
सबकी बसुधा लीन्ह।।
12-अछे पुरूष का बीज यह,
ब्रिच्छ न जाने कोय।
ताते चोखा मूस अब,
कछुओ कहे न होय।
13-आगे हमारे साथ था,
अब भा जिवका काल!
कह कबीर यह चोखा चीन्हो,
मिटे जीव जंजाल।।
14-पंडित भेद सूनाहू,
नहिं तो छांडो गांव।
मै पूछों तोहि पंडिता,
निराकार केहि ठांव।।
15-पंच तत हम जानत,
और न जानत कोई।
हमरा भेद जो पावे,
तब वह अस्थिर होइ।।
16-दो संयोग जग भीतरे,
कंथ भामिनी नेह।
अष्ट धातका युगल तन,
एक प्राण दो देह।
17-पढ पोथी भटका मारत,
घटकी जानत नाहिं।
कहे कबीर जो घट लखे,
तो फिर घट ही माही।।
18-नरक सरग कोइ और है,
करता के नहिं काम।
सुन कहानी तोसो कहों,
ऐसे कैसे राम।। े
हम करता इन माहिं।
नख सिख ते पूरण बना,
सो फिर अंते नाहिं।।
2-हसो तो दाव परखिये,
रोवो काजर ना,
ज्यों काठे घुन खाय।।
3-संसं खायो खेत,
केत्र बर लोही भयो।
वाय जगतकी रीत,
हीरा जर कोयला भयो,
4-उपज बिनसमें सब परे,
कोई भया न थीर।
करता अपन न चीन्हई,
कासो कहें कबीर।।
5-बहुत मिले बहु भंति,
मन अनमिल सब सो रहा।
जाते जियकी पांत,
ते जग दुलर्भ पाहुना।
6-जान पूंछ कुंवा ना परे,
तजा न पुरूष विदेह।
कहे कबीर कासो कहूं,
जो छोडे झूठ सनेह।।
7-रातदिन कछु है नहीं,
सुन्य पीजरती है सूवा।
कहें कबीर ख्याल यह अटपट,
नाहीं जिया न मूवा।
8-जाने नहीं जान जग दीना,
जानते भया बिजान।
कहें कबीर बेजान को,
अबहुंक परे पहिचानंं।।
9-ग्रहन नाही पर सब जगत,
परे गरहन केरा भाग।
मै नहिं जानों पंडित कवे,
गरहन ऐहि लाग।
10-चंदा गरहन गरासिया,
ऐसे गिरहित लोग।
उग्रह होन न पावई,
दिन दिन बाढ दुबार।
11- चोखा को हम चीन्हा,
चोखा हमें न चीन्हं।
कहें कबीर वह चोर अपरबल,
सबकी बसुधा लीन्ह।।
12-अछे पुरूष का बीज यह,
ब्रिच्छ न जाने कोय।
ताते चोखा मूस अब,
कछुओ कहे न होय।
13-आगे हमारे साथ था,
अब भा जिवका काल!
कह कबीर यह चोखा चीन्हो,
मिटे जीव जंजाल।।
14-पंडित भेद सूनाहू,
नहिं तो छांडो गांव।
मै पूछों तोहि पंडिता,
निराकार केहि ठांव।।
15-पंच तत हम जानत,
और न जानत कोई।
हमरा भेद जो पावे,
तब वह अस्थिर होइ।।
16-दो संयोग जग भीतरे,
कंथ भामिनी नेह।
अष्ट धातका युगल तन,
एक प्राण दो देह।
17-पढ पोथी भटका मारत,
घटकी जानत नाहिं।
कहे कबीर जो घट लखे,
तो फिर घट ही माही।।
18-नरक सरग कोइ और है,
करता के नहिं काम।
सुन कहानी तोसो कहों,
ऐसे कैसे राम।। े