कबीर का मनुष्य ज्ञान की सहायता से दुर्बलताओ को मुक्त करने वाला प्राणी था कबीर के प्राणी की पहचान कुल से नही बल्कि कर्म से होती थी । यही कारण है कि उनका ईश्वर के सबंध में कहना था कि न मैं देवल में, न मै मस्जिद में, न काबे-कैलाश में, न तो कौने क्रिया कर्म में, न ही योग-बैराग में, मैं सब श्वांसों की श्वास में । महान् कबीर भारत के वे सुकरात हैं, जिन्होंने जहर के प्याले में बैठकर अमृत की वर्षा की ।