// दोहे //
2. बहुर न धरई तन्न।
सतनाम की महिमा जाने,
मन अच करमै सरन ।।
4. कहता कही न जाय।
चारमुक्ति औ चार फल,
हंदकीपऋहंदमेीण्बवउ
और परमपद पाय।।
3. नाम सत संसार में,
और सकल है पोव ।
कहना सुनना देखना,
करना सोच असोच।।
4. सतलौके सब लोक पति,
सदा समीप प्रमान।
परमजोत सो जोत मिलि,
प्रेम सरूप समान।।
5. सुख सागर सुख बिलसई,
मानसरांेवर न्हाय।
कोट कामसी कामिनी,
देखत नैन अधाय।।
6. महिमा बडी जो साध की
. जाके नाम अधार।
सतगुरू केरी दया उतरे
भव जल पार।।
7, कहैं कवीर विचार के,
तब कुछ किरतम नाहि।ं
परमपुरूष तहं आपही,
अगम अगोचर माहि।।ं
8, कहैं कवीर विचार के,
जाके बरन न गांव ।
निराकार और निर्गुना,
है पूरन सब ठांव।।
9, कहैं कवीर विचार को
कूत्रिम करता नहिं होय।
यह बाजी सब कूत्रम है,
सांच सुनो सब कोय।।
10, कहहिं कवीर पुकारिकै,
ई लेउ व्यवहार।
एक रामनाम जाने बिना,
भव बूडिमुवा संसार।।
11, बाप पूतकी एकै नारी
,एकै माय बिजाय ।
ऐसा पूत सपूत न देख्यो,
बापै चीन्है धाय।।
12, जीव सीव प्रकटे सबै,
वे ठाकुर सब दास ।
कवीर और जाने नहीं,
एक रामनाम की आस।।
13, चीन्हि चीन्हि कह गावहू,
बानी परी न चीन्हि।
आदि अंत उत्पत्ति प्रलय,
सब आपुहि कही दीन्हि।।
14, बिन गुरू ज्ञाने दुन्दभो,
खसमकही मिलि बात।
जुगजुग कहवैया कहै
,काहु न मानीजात।।
15, शून्य सहज मन स्मूतिते,
प्रकट भई यक ज्योति।
बलिहारी ता पुरूष छवि,
निरालंब जो होति।।
16, अविगतिकी गति का कहौं,
जाके गांव न ठांव।
गुण विहीना पेखना,
का कहि लीजै नांउ।।
17, कुल अभिमाना खोयकै,
जियत मुवा नहीं होय।
देखत जो नहिं देखिया,
अहष्ट कहावै सोय ।।
18, बंदि मनाय फल पावहीं,
बंदि दिया सो देव ।
कह कवीर ते उबरे,
निशि दिन नामहिं लेव।।
19, अमूत वस्तु जानै नहीं,
मगन भये कित लोय।
कहहि कबीर कामो नहीं,
मगन भये कित लोय।।
20, मुवा है मरी जाहुगे,
मुये कि बाली ठेके संग जाय ।
झूठे झूठा मिमिरहा,
अहमक खेहा खाय।।
34, सोइ कहंते सोइ होहुगे,
निकरि न बाहर आव।
हो हजूर ठाढ़े कहौं,
क्यों धोखे जन्म गवाव।।
35, यती सती सब खोजहीं,
मनै न मानै हारि।
बडे़ बड़े बीर बांवे नहीं,
कहहिं कवीर पुकार ।।
36, जिन्ह यह चित्र बनाइया,
सांवा सो सूत्रधार।
कह कबीर ते जनभले
चित्रवंतहिं लेहिं विचार।।
37, एक अण्ड ओंकार ते,
सब जग भयो पसार।
कहहि कवीर सब नारि रामकी,
अविचल पुरूश भतार।।
38, अलख जो लागी पलक में,
पलकहि में डसिजाय।
विषहार मंत्र न मानई,
गारूड काह कराय।
39, ज्ञान अमर पढ़
, बाहिरे, नियरे ते हैं दूरि।
जो जाने तेहि निकट है
,रहयों सकल घट पूरि।।
40, कहहि कवीर पाखण्डते,
बहुतक जीव सताय।
अनुभव भाव न दर्शई,
जियत न आपु लखाया।।
41, रामहिराम पुकारते,
जिभ्या परिगो रौस,
सुधाजल पीवे नहीं,
खोद नियनकी हौंस।।
सत्यनाम गुरू महिमा