मंगलवार, 20 अगस्त 2013

वेदा हमारा भेद है, हम हीं वेदों माहिं।


  • 1
  • सात द्वीप नौ ख्ड मंे,
  • औ इक्क्ीस ब्रम्हांड ।
  • सतगुरू ु विना न बाचिहा,
  • कालबडो परचंड।।
  • 2
  • गुरू चरणोदक अनन्त फल
  • हमते कही न जाय।
  • मनकी पुरवै कामना,
  • लेवे चित्त लगाय।
  • सतगुरू समानको हितू,
  • अन्तर करो विचार।
  • कागा सो हंसा करै,
  • दरसावैततसार।
  • पाप ताप सबही हरै,
  • अमरलोक लेै जाय।ं।
  • 3
  • आस करे सुन्य नगरकी,
  • जहां न करता कोय।
  • कहें कबीर बूझो जिव अपने,
  • जाते भरम न होय।।
  • 4
  • सब जग भूला,
  • भूला सब संसार।
  • कहें कबीर बूझो तुम ज्ञानी,
  • करके अपन विचार।।
  • तिर देवा गये जात न जाने,
  • गये साधक अवधूत।
  • कहें कबीर पहिचानो ज्ञानी, 
  • पांचों आतम भूत।।
  • 5
  • यह दुबधा मिल दुचित भये,
  • कैसे न चीन्हे मूल।
  • कहें कबहीर तिरगुन गुणा,
  • भूले, यही सबन की भूल।
  • 6
  • सब जग ूठ सनेह।।
  • 7
  • चेतो किन तुम चेतो,
  • परमहंस संयोग।
  • कहें कबीर करता नहिं एते,
  • पांचोंमें सुखभोग।।
  • 8
  • देव पैगम्बर रिषि मिलि,
  • इनही माना मूल।
  • निराकारमें यह सब अटके,
  • यही सबनकी भूल।।
  • 9
  • हमरा यह सब कीन कराया,
  • हमहीं बस परगांव।
  • कहे कबीर सबको जगह,
  • हमको नाहीं ठांव।।
  • 10
  • अमिट वस्तु सब मेटे,
  • जो मेटे सो प्रमान।
  • मिटतन कीन्ह सनेहरा,
  • आपई मिटे निदान।।
  • पैंडे सब जग भूलिया,
  • कहंु लग कहौं समुझाय।
  • कहें कबीर अब क्या कीजे,
  • जगते कहा बसाय।।
  • 11
  • ब्रम्हा यह समझे नहीं,
  • बिना बीज कछु नाहिं।
  • कहें कबीर जो उन कहो,
  • सो राखो मन माहिं।।
  • 12
  • वेदा हमारा भेद है,
  • हम हीं वेदों माहिं।
  • हारिल लकडी ना तजे,
  • नर नाहीं छोडे टेक।
  • कहें कबीर गुरू शब्द ते,
  • पकड रहा वह एक।।
  • धरती बेल लगायके,
  • फल ाइया,
  • ना समझे सुत नारि।
  • कहें कबीर अब कासों कहिये,
  • अपनी चूकी हार।।
  • माताते डांइन भई,
  • लिया जगत सब खाय।
  • कहें कबीर हम क्या करें,
  • जगत नाहिं पतियाय।।
  • ससा सिंको खाइया,
  • हरना चीता खाय।
  • कहें कबीर चींटी गज मारी,
  • बिल्ली मूसा धाय।।
  • 17
  • बीज ब्रिच्छ दोनों कायामें,
  • कबहुं नास न होय।
  • कहे कबीर या ब्रिच्छूको,
  • बिरला बूझे कोय।।
  • बीज व्रिच्छ यक साथ है,
  • आगे पाछे नाहिं।
  • बीज ब्रिच्छ में ब्रिच्छ बीज में,
  • जानत कोई नाहिं।।
  • बिना बीज ब्रिच्छ है नाहीं।
  • यह जानत कोय।
  • ब्रिच्छ बिना बीजो नहीं,
  • यामें संक न होय।।
  • 18
  • धोखे धोखे सब जग बीता,
  • धोखे गया सिराय।
  • थित ना पकडे आपनी,
  • यह दुख कहां सिराय।।
  • 19
  • नटके साथ जस बेसवा,
  • जियरा मनके हाथ।
  • केतक नाच नचावई,
  • राखे अपने हाथ।।
  • मनके हारे हार है,
  • मनके जीते जीत।
  • कहें कबीर तहॅ मन नहीं,
  • जहां हमारी रीत।।
  • 20
  • केते बुंद अलपे गये,
  • केते सुलप वोहार।
  • केते बुुंद तन धरि गये,
  • तिन्ह रोवे संसार।।
  • सकल साज एक बुंदमें,
  • जानत नाहीं कोय।
  • कहें कबीर जिन जिव भूले,
  • परमपरे भर्म सोय।।
  • 21
  • माया ते मन उपजा,
  • मनते दस औतार।
  • ब्रम्हा विस्नू धोखे गये,
  • भरम परा संसार।।
  • करताके नहिं काम यह,
  • यह सब माया कीन्ह।
  • कहे कबीर बूझो माया को,
  • नाव धरो जन कीन्ह।।
  • ब्रिही खेतहिं खाल है,
  • मात सुतन को खात।
  • कहें कबीर सुत नाती खाये,
  • यह दुख नाहिं बिहात।।
  • 22
  • मूड हिलावे नावत, भरम भीहा बैठाय।
  • कहें कबीर इन नावत,
  • राखा सब जग भरमाय।।
  • चुरैल भूत ना कोई,
  • गन गंध्रव कोइ नाहिं।
  • मनसा डाइन संका भूत,
  • संसार पराश्रम माहिं।।
  • 23
  • बीच ते आये चार गुण,
  • बीचे गये सिराय।
  • उपज बिनस जाने नहीं,
  • सब जग रहा भुलान।।
  • 24
  • राम कहत 2 जग बीता,
  • कहूं न मिलिया राम।
  • कहें कबीर जिन रामहि जाना,
  • तिनके भये सब काम।।
  • यह दुनिया भई बावरी,
  • अद्रिस्ट सो बांधा नेह।
  • कहें कबीर द्रिस्टमान छोडके,
  • सेवे पुरूष विदेह।।
  • 25
  • जहॅ नहिं तहॅं सबि कछू,
  • वहं की बांघी आस।
  • कहें कबीर ये क्यों न त्रिपत,
  • दोउकी एके प्यास।।
  • 26
  • आप सबनमें होय रहा,
  • आपर भया निनार।
  • कहें कबीर एक बूझ बिन,
  • भटका सब संसार।।
  • 27
  • राजा रैयत होइ रहा,
  • रैयत लीन्हा पाज।
  • रयत चाहा सोइ लिया,
  • ताते भया अकाज।।
  • मूसा चूंठी आस।।
  • 28
  • महा गुनन की आगरी,
  • महा अपरबल नारि।
  • कहें कबीर यह बडा अचंभा,
  • व्याहत भई कुमारि।।
  • निरगुन आपन उन रचा,
  • लौट भई वह नार।
  • कहें कबीर अनखायके,
  • रचा पुरूष निरकार।।
  • निरगुण निराकार करता ठहरावा,
  • तिनहुं दिया उपदेश।
  • कहें कबीर त्रिगुन चले,
  • जहां न चंद दिनेस।।
  •  
  •  
  • 29
  • गुरवा संग सब कोई भटके,
  • करता परा न चीन्ह।
  • कहें कबीर मनके भ्रम भूले,
  • गुरू सिक्ख जिव दीन।।
  • आगे आगे गुरू चला,
  • जहां न ससि औ भान।
  • कहें कबीर पाछै चला,
  • गुरूमे यहू समान।।
  • 30
  • माता गुरू पुत्र भये चेला,
  • सुतको मंत्र दीन।
  • कहें कबीर माताको वचन,
  • सबहिन चित धर लीन।।
  • 31
  • तिसका मंत्र सब जपे,
  • जिसके हाथ न पांव।
  • कहें कबीरसो सुत माको,
  • दिया निरंजन नांव।।
  • जपते 2 जी गया,
  • काहू मिलिया नाहिं।
  • कह कबीर तड नाहीं समझे,
  • सब लागे वहि माहिं।।
  • 32
  • बिस्व रूप सब साथ था,
  • बिस्वरूप यह सोय।
  • जैसे साज पींडकी,
  • आगे पाछे न होय।।
  • बहे बहाये जात थे,
  • लोक वेदके साथ।
  • बीचे सतगुरू मिल गये,
  • दीपक दीन्हा हाथ।।
  • तुझहीसे सब कुछ भया,
  • सब कुछ तुझही माहिं।
  • कहें कबीर सुन पंडिता,
  • तेहि ते अंते नाहिं।।
  • 33
  • करता सब घट पूरना,
  • जगमें रहा समाय।
  • कहें कबीर एक जुगति बिन,
  • सब कछु गया नसाय।।
  • 34
  • आद अंत अमर हम देखा,
  • जीव मुवा नहिं कोय।
  • यह बिश्वरूप ब्रम्हज्ञानी,
  • उतपत प्रलय न होय।।
  • मत भूलो ब्रम्हज्ञानी,
  • लोक वेदके साथ।
  • कहें कबीर यह बूझ हमारी,
  • सो दीपक लीजे हाथ।।
  • 35
  • त्रिदेवा सुमरन लगे,
  • पूजा रचा ग्रंथ।
  • तिरिया गई पर पुरूषपै,
  • छोडके आपना कंध।।
  • त्रिया कंत न माने,
  • कंता ठााय।।
  • ब्रम्हा के प्रतीत भई,
  • बांधा वेद ग्रंथ।
  • प्रगट नैनन देखत नहीं,
  • परा वेदेके पंथ।।
  • मायाते यह वेद भै,
  • वेद मध्य
  • दोय तत्त।
  • निर्गुन सर्गुन दो बतलावे,
  • कहे नाहिं जो सत्त।।
  • 38
  • नारी
  • महामाया भाठी रची,
  • तीन लोक बिस्तार।
  • कहें कबीर हम रहे निनारे,
  • पी माता संसार।।
  • ब्रम्हा पियत पिया सब काहू,
  • करता अपन न चीन्ह
  • कहें कबीर अब कहत न आवे,
  • विरंच इसारा कीन्ह।।
  • 39
  • कब जैडो वहि देशवा,
  • जहां पुरूष निरंकार।
  • कहें कबीर हमहूं ते कहियो,
  • जब होय चलन तुम्हारा।।
  • आगे गये तिन किनहु न कहिया,
  • अब तुम लीजो साथ।।
  • जो है तुम्हें भरोसवा,
  • गहो हमारा हाथ।।
  • त्रिय देवा जान्यो नहीं,
  • कौन रूप केहि देश।
  • अबहूं चेत समझ नर बौरे,
  • झूठा दिया उपेदेश।।
  • 40
  • करताते अनखानी माया,
  • आगम कीन्ह उपाय।
  • कहॅ कबीर त्रिया चंचल,
  • राखा पुरूष दुराय।।
  • केता हम समझाइया,
  • पै ना समझे कोय।
  • उनका कहा जगत मिल माना,
  • हमरे कहे क्या होय।।
  • 41
  • पौरूष अपनेत विरची नारी,
  • घर-घर कीन्हा ठांव।
  • निरगुन को करता ठहराया,
  • मेट हमारा नांव।।
  • 42
  • त्रियदेवा समझे नहीं,
  • भई माय ते नार।
  • उन भूलत भूला सब कोई,
  • कहें कबीर पुकार।।
  • 43
  • वेदन बरन जो पावें,
  • कहें एक तो बात।
  • जैसी कुछ माता कही,
  • सोइ कहें दिन रात।।
  • 44
  • ब्रिछ एक छाके नई,
  • फूटी साखा चार।
  • अठारह पत्र चार फल लागे,
  • फुलवा लेहु विचार।।
  • 45
  • तुम जो भूले बेद विद्या,
  • करता अपन न चीन्ह।
  • कह कबीर यहि भ्रममें,
  • सकल सृष्टि जिय दीन।।
  • 46
  • उनके संग गये तिरदेवा,
  • गया जग उनके साथ।
  • कहें कबीर अब मरो मसोसन,
  • मल-मल दोनों हाथ।।
  • 47
  • निहततसे कैसे तत भया,
  • सुन्न ते भया अकार।
  • कस्यप कन्या कहां हती,
  • पंडित कहो विचार।।
  • पुरूष कामिनी एक संग,
  • कथ नर संयोग।
  • कहें कबीर सुन पंडिता,
  • पुत्र न कंथ वियोग।।
  • 48
  • पंडित भूला बेद पढि; 
  • लखा मूल ना भेद।
  •  एक नारि एक पुरूषते,
  •  सकल साजना खेद।।
  •  
  •  49 नहि कंठी नहिं माल है,
  •  नहिं तिलक नहीं छाप।
  •  नहिं वाके कछु भेष है,
  •  नहिं वाके तप जाप।।
  •  जात बरण कछु भेष नहीं,
  •  नहिं धोखे की बात।
  •  ज्ञान भया धोखा गया,
  •  ज्यों तारा परभात।।
  •  जो बहा सो बहनदे, 
  • ताते चेत शरीर। 
  • तैं अपने को बूझले,
  • कहत पुकार कबीर।।
  • 50
  • आपन घर माहुद भयो,
  • छोड-छोड पछताय।
  • कहें कबीर घर औरके,
  • पूछत पूछत जाय।।
  • 51
  • पांच तत्त निज मूल है,
  • हम करता इन माहिं।
  • नख सिख ते पूरण बना,
  • सो फिर अंते नाहिं।।
  • 52
  • हंसो तो दाव परखिये,
  • रोवों काजर ना,
  • ज्यों काठे घुन खाय।।
  • 53
  • संसे खायो खेत,
  • केत्र बर लोही भयो।।
  • उपज बिनस में सब परे,
  • कोई भया न थीर।
  • करता अपन न चीन्हई,
  • कासों कहें कबीर।।
  • 54
  • बहुत मिले बहु भांति,
  • मन अनमिल सब सो रहा।
  • जाते जियकी पांत,
  • ते जग दुर्लभ पाहुना।।
  • जान पूंछ कुंवा ना परे,
  • तजा न पुरूष विदेह।
  • कहें कबीर कासों कहूं
  • जो छोडे झूठ सनेह।।
  • 55
  • रातदिन कछु है नहीं,
  • सुन्य पींजरती है सूवा।
  • कहें कबीर ख्याल यह अटपट,
  • नाहीं जिया न मूवा।।
  • जाने नहीं जान जग दीना,
  • जानते भया बिजान।
  • कहैं कबीर बेजानको,
  • अबहुंक परे पहिचान।।
  • 56
  • ग्रहन नाहीं पर सब जगत,
  • परे गरहन केरा भाग।
  • मैं नहिं जानो पंडित कवे,
  • गरहन ऐहि लाग।।
  • चंदा गरहन गरासिया,
  • ऐसे गिरहित लोग।
  • उग्रह होन न पावई,
  • दिन दिन बाढ पोथी भटका मारत,
  •  घटकी जानत नाहिं।
  •  कह कबीर जो घट लखे,
  •  तो फिर घटही माहिं।।
  •  
  •  63 नरक सरग कोइ और है,
  •  करताके नहिं काम सुन
  •  कहानी तोसों कहों,
  •  ऐसे कैसे राम।।
  •  64 कहो पंडित कछु न हता,
  •  केहिते भया अकार।
  •  कहें कबीर कैसे रचा,
  •  कहो प्रगट विचार।।
  •  पांच तत्त गुन तीन जो,
  •  जियरा तिहि संयोग।
  •  संजोगे सब कुछ भया,
  •  झूठे बोलत लोग।।
  • पांचों का भेला पडा,
  • प्रान बसे ता माहिं।
  • कहें कबीर भेला छूटे,
  • फिर यह जियरा नाहिं।।
  • 65
  • सुन्य को होती सब कहो,
  • जहां सुन्य तहां नाहिं।
  • मुकत अवस्था कुछ नहीं,
  • जिव पर संसय माहिं।।
  • चार चैकडी संसय गई,
  • संसय तउ न छूट।
  • कहीं कबीर सोई ब्रम्हज्ञानी,
  • क्या कहूं वैकुण्ठ।।
  • 66
  • कुम्भ भरा जो फूटे,
  • दूसरे में क्यों जाय।
  • कहे कबीर सुनो ब्रम्हज्ञानी,
  • कैसे अंत जीव समाय।।
  • जीवन अंते जात है,
  • जैसे घटको नीर।
  • यह शरीर घट जीव को,
  • समझाय कहें कबीर।।
  • सो गुन कबहुं न बीसरे,
  • जो गुन होत शरीर।
  • मन भरमत चैरासी,
  • कहहिं पुकार कबीर।।
  • स्वेत कृष्ण जिय पीयरा
  • हरा लाल जिय जान।
  • पांच तत्तके रंग रगो,
  • पांचों को पहिचान।।
  • 67
  • पांच तत्त अस्थान निज,
  • इनहिं बिहूना नाहिं।
  • कहें कबीर बूझो ब्रम्हज्ञानी,
  • जनि पर संसय माहिं।।
  • 68
  • सिक्ख समाना गुरूमें,
  • निजके लागा नेह।
  • बिलगाये बिलगे नहीं,
  • एक परान दो देह।।
  • 69
  • प्राण तत्तको दुख नहीं,
  • आस्थानेका दोष।
  • कहें कबीर समझ जिय अपने,
  • दूसरका नहीं भरोस।।
  • सिंह चले हर माहीं,
  • सीगट बोवे धान।
  • कहें कबीर यह बडा अचंभा,
  • छागल भयल किसान।।
  • 70
  • निरगुन ठहरा सुन्य में,
  • आपा डारा खोय।
  • कहो ज्ञानी तोसों कहों,
  • सो मिट कैसे होय।।
  • ज्ञानी बूझो आपको,
  • अस्थान झूझले थीत।
  • कहें कबीर नैनन दिसे,
  • ताकि करो प्रतीत।।
  • 71
  • जो चेतन तेहि सब कछ व्यापे,
  • जडको व्यापन न होय।
  • कहं कबीर बातें यह झूठी,
  • माने वचन न कोय।।
  • 72
  • निराकार निरगुन है करता,
  • वाके रूप न रेख।
  • तुम कैसे वही मिलिहौ,
  • समझावो करी विवेक।।
  • रूप न रेखा निरगुन है साहेब,
  • जब नाहीं वहि देख।
  • वहिके वरण तुमहू होई जैहो,
  • बहुरि न मिले संदेश।।
  • वहां न जावो रहो यहि देसवा,
  • मानो कहा हमार।
  • कहं कबीर वह झुट संदेसवा,
  • यह सुख का दरबार।।
  • 73
  • पंडित मोहि ले चलो,
  • जौन देश वह लोग।
  • ो,
  • लेव न वाके नाम।।
  • एक समय हम गये वहि देसवा,
  • वहां मिला ना कोय।
  • बूझ अस्थान गहो जो ज्ञानी,
  • उपज बिनस नहिं होय।।
  • 74
  • चल ज्ञाती मैं चलिहो,
  • यह कोतक जेहि देस।
  • मेरे जिय एक अचंभा,
  • पार ब्रम्ह केहि भेस।।
  • 75
  • मैं तोहि पूछों पंडित,
  • तुमहू थे वहि पास।
  • जो यह बिध समझावत,
  • कह कछु वेद औ ब्यास।
  • अस पंडित कथ भाषत हम,
  • नाहीं जानत भेद
  • ब्रम्हा कही ताते हम जानी,
  • सबहिं बतावत वेद
  • वेद ब्रम्हा कहा भवानी,
  • ब्रम्हा कीन्हा ग्रंथ।
  • कहें कबीर करता नहीं,
  • भाषो माया का यह पंथ।।
  • 76
  • एक पच्छ अस्थान भंग है,
  • एक लीन्हें अस्थान।
  • कहें कबीर सुनो ब्रम्हज्ञानी,
  • सो अस्थाने जान।।
  • 77
  • वहां नहीं पिता तुम्हारो,
  • हम हैं पिता तुम्हार।
  • वे नारी हम उनके पुरूष,
  • बिच राखा निरंकार।
  • माता कहा सोई हम मानत,
  • तुम्हरी झूठी बात।
  • प्रथमे माय हमारी सेवा,
  • जाका यह विस्तार।।
  • 78
  • हमे दुराय ठहरावें धोखा,
  • ऐसी त्रिया अनखान।
  • कहें कबीर मानो त्रिदेवा,
  • माताकी पहिचान।।
  • 79
  • निहततसे कैसे तत्त भया,
  • निरगुनते गुणवंत।
  • निहकर्म ते कैसे कर्म भया,
  • कहो समझ त्रितंत।।
  • रूप रेख वाके कछु नहीं,
  • कैसे आवे ध्यान।
  • कह कबीर अबहूं क्यों न चेतो,
  • कहा हमारा मान।।
  • 80
  • कौनकी भक्ति करो तुम भाई,
  • को बैकुंठ कहां बस सोय
  • कहें कबीर झूठ क्यों भाषा,
  • झूठा सब ना होय।।
  • तहिया हरि नित मिलत थे,
  • अब क्यों रहे छिपाय।
  • अब कोई क्यो बा जावे,
  • ना वह कहे बुझाय।।
  • 81
  • चार जुग जात हम देखा,
  • काहु न कहा संदेस।
  • जैसे देश सुन्य हम जानत,
  • जो वह ऐसा देस।।
  • बातन कहत-कहत जिव दीन्ही,
  • लोका लोक न चीन्ह।
  • कहें कबीर बिना वह देखे,
  • आपन जीव जग दीन्ह।।
  • लोकालोक अकास नहिं,
  • झूठे लोका लोक।
  • कहें कबीर आस जिन बांधो,
  • छांडोजीका सोक।।
  • 82
  • ब्रम्ह कुलाल हर जग मटटी,
  • रूधिर करे सिंगार।
  • मानसिक रचना जग रचा,
  • पंडित कहो बिचार।।
  • प्रथम उतपत मानसी,
  • फिर भय पुरूष औ जोय।
  • कहे कबीर सृष्टिक सबकी,
  • बिरला बूझे कोय।।
  • तेहि नारी घर सबके,
  • चार बरण जग कीन।
  • तेरह ते तेरह भई खानी,
  • बेद साख असदीन।।
  • 83
  • करता ते कर्म निहकर्म ते कर्ता,
  • झूठा कर्म सनेह।
  • कहें कबीर जैसा पडा मेला,
  • तैसा जगत करेह।।
  • 84
  • बिव अक्षर माया जन भाषो,
  • ताते रचो सतंत।
  • चार वेद षट दरसन,
  • बुध बल नित्त निचंत।।
  • ग्रंथ रचा गुण कर्म लगाया,
  • नरक सरग विस्तार।
  • कहें कबीर करता नहिं चीन्हों,
  • ये उरले व्योहार।।
  • 85
  • देव न देखा सेवको,
  • सेवक देव न दीख।
  • कहें कबीर मरे तो देखो,
  • यही गुरू दई सीख।।
  • तेरी गति तैं जाने देवा,
  • हममें सामरथ नाहिं।
  • कहें कबीर यह भूल सबन की,
  • सब पर संसय माहिं।।
  • 86
  • जेई पान परवारिया,
  • तेई तम्बोली हाट।
  • तेई पान गुरूवा दीन्हा,
  • लायसि औघट चाट।।
  • औघट घाटी नर गया,
  • गुरूवा के उपेश।
  • कहें कबीर कोउ नाही लावे,
  • उनका बहुर संदेस।।
  • 87
  • निरगुन पुरूष निरंतर देवा,
  • निराकार है सेव।
  • यहि बानमें वह नाहीं,
  • बिरला बूझे भेव।।
  • पांच तत्त गुन तीन धरि,
  • सब गुन धरे श्रीर।
  • प्रत्यच्छ जगत में देत दिखावा,
  • कहहिं पुकार कबीरा।
  • 88
  • जप तप दीखा थोथरा,
  • तीरथ बरत बिस्वास।
  • सुवना सेम्हर सेइके,
  • उड फिर चला निरास।।
  • सुवना सेम्हर सेइके,
  • बैठा पलासे जाय।
  • चोंच टकोरे सिर धुने,
  • वो उसहीका भाय।।
  • 89
  • सुमरन सुरतिकी गम नहीं,
  • बहुत बिकट वह पंथ।
  • सुरति निरति तहवां नहीं पहुंचे,
  • अस कथि भाषत ग्रंथ।।
  • 90
  • मनहरवा नगरवा, घट घट रहा समोई।
  • यह तो काम नाहीं करता कै,
  • बिरला बूझे कोई।।
  • जो बूझे सो थीर है,
  • बिन बूझे भरमाय।
  • कहकविर एक बूझे बिन,
  • चले रंग औ राय।।
  • 91
  • षट दरशन तहवा चले,
  • जहां न ससि औ मान।
  • प्रमधाम वैकुंठ बिस्नु को,
  • कथत ज्ञान विज्ञान
  • चलते चलते धाम गा,
  • वहां तें फिरा निरास।
  • कहे कबीर बिस्नू ना मिला,
  • सेवा करत निरास।।
  • 92
  • स्वामी ते दरशन नाहीं,
  • सेवक सेवा लाग।
  • कहे कबीर पृथ्वि यह मरगई,
  • हरि ही के बैराग।।
  • जीवत मिलना नहिं होय ज्ञानी,
  • मरे न होय सनेह।
  • कहे कबीर मिले हरि भाई,
  • जोना होय बिदेह।।
  • 93
  • जहां न वस्ती सो बसा,
  • बस्ती भई उजार।
  • सुर नर मुनि सब गये बिगूचे,
  • कहें कबीर पुकार।।
  • संहर बसंता छोडके,
  • उजर बसाया गांव।
  • ना वह बस ना उजरा,
  • भय बसेका नांव।।
  • 94
  • अगनी पानी खाइया,
  • अंतर पटको पाय।
  • यों जगको माताने खाया,
  • जियरा गया हेराय।।
  • अगिन बुझानी बुझगई,
  • दूध बिनासा घीव।
  • कहें कबीर इन आस ने,
  • ऐसा बिनासा जीव।।
  • 95
  • कहा हमार न माने कोई,
  • उनको कहो परवनि।
  • ये जिव चल धोखे मिला,
  • मिट गया जीव निदान।।
  • 96
  • जहां पवन नहिं संचरे,
  • रवि ससि उदय न होय।
  • कहें कबीर जहां हरि नहीं,
  • तहां जात सब कोय।।
  • 97
  • बीच ते आई दोय नारी,
  • बीचे कीन अकाज।
  • कहें कबीर दोनों जग लूटा,
  • यह करताको साज।।
  • जहां बसें ये दोनों नारी,
  • तहों नहीं बिस्राम।
  • कहें कबीर इनको संग छाडो,
  • यही तुम्हारो काम।।
  • 98
  • अनखाया खानीको पीवे,
  • देखे सुने हुजूर।
  • नख सिखते पूरण बना,
  • तासो कहत जग दूर।।
  • सब गुन भरा सृष्टिका करता,
  • निरगुन कहो न कोय।
  • कहें कबीर प्रगट जग भीतर,
  • भर्मत पुरूष औ जोय।।
  • 99
  • सुर नर मुनि पशु पंछी मारत,
  • डार आपने जाल।
  • कहें कबीर यह महा अपर्बल,
  • बिरले बांचे बिचारा।।
  • 100
  • जग बांधा जंजीर कर्मके,
  • छूटा नाहीं कोई।
  • कहें कबीर बंधा नहीं,
  • साध जानीये सोई।।
  • 101
  • रामनगर गुरूवा बसा,
  • माया नगर संसार।
  • कहं कबीर यहि दो नगरते,
  • बिरले बचे बिचार।।
  • पाप पुन्य गुरू कर्म हरि,
  • बैकुंठ लोक निजधाम। ये
  • ये तो सब उजर परे,
  • बूझो आतमराम।।
  • 102
  • करता ते यहि भयो अकरता,
  • गुरूवाके उपदेश।
  • कबिरा कोइ लावे नहीं,
  • करता कर संदस।।
  • 103
  • रमता रामे छोडके,
  • जो पूजे पाषाण।
  • तिन करता नहिं चीन्हिया,
  • अंत पषाण समान।।
  • जैसा गुरू सिखापना,
  • सिक्ख चला सोइ चाल।
  • कबिरा इन सब खोइया,
  • वे सब भये निहाल।।
  • 104
  • जाके पंडित प्रान है,
  • जग कीन्हो बिस्तार।
  • जो रूपधरे करता अहै,
  • ताको कीन निनार।।
  • जो करता तेहि नहिं सेवे,
  • यह लोगोंकी बूझ।
  • कह कबीर आरसीं अंदर,
  • परा अंधेरे सूझ।।
  • 105
  • समाधि लाय सब जग बैठा,
  • चला संग ले प्रान।
  • कबिरा तब भ्रम उपजा,
  • देखा और निसान।।
  • 106
  • बूझो जोगी आपको,
  • बूझब सो यह देश।
  • कह कबीर न जाय न ऐवै,
  • बहुर न मिल संदेस।।
  • बहुत गये सो कोइ न आया,
  • कासो पूछो बात।
  • कहें कबीर बिना हरि परचे,
  • सकल सृष्टि वही जात।।
  • 107
  • खलबल पड जोगी नगर,
  • छोड चलाजब गांव।
  • तेतिस आप रहे न्यारे,
  • सुन्न पडा सब ठांव।।
  • 108
  • खालि देख के भर्म भय,
  • ढ फिरा चहुंदेस। आपको थिर रहे,
  • योगी अमरसो होय।
  • आप बूझे भरम तजे,
  • आपइ और न कोय।।
  • 109
  • जोग करे ते मर गये,
  • दसो दिशा भई सुन्न।
  • कहें कबीर जुगति चीन्हले,
  • जो छूटे वह धुन्न।।
  • घट फूटा निकसा कुंभते,
  • कहं कबीर सुन पंडिता,
  • घर अपने को बूझ।।
  • गुह कहते जब ब्राम्हण चले,
  • ग्रह पडा नहिं चीन्ह।
  • यहां वहां की दोउ गंवाई,
  • जीव अकारय दीन्ह।।
  • 113
  • चेतो किन तुम चेतो अबहूं,
  • जहां नहीं वहां गांव।
  • कहें कबीर अबहीं मिल करते,
  • अब न मिटावो नाम।।
  • 114
  • मातु न होती पिता न होता,
  • होता रूधिर औ नीर।
  • कहं ते आवत पंडित,
  • ऐसा अनूप शरीर।।
  • तत्त भये संयोग दोउ,
  • निहत्त नाहीं कोय।
  • कह कबीर सो फल उपजे,
  • तत्त अधिक जो होय।।
  • 115
  • जो अकार गुण कर्म धरेहै,
  • सो निराकार नहिं होय।
  • फल फूल पत्र औ साखा,
  • बिरला देखे कोय।
  • यही सरूप करताको,
  • ज्ञानी अंते नाहिं।
  • कहं कबीर परोजन संसय,
  • गगन मंडल कछु नाहिं।।
  • 116
  • बिना पुहुप नहिं बास है,
  • बिना बीज नहिं कोय।
  • बिना तन सोहं शब्द नहीं,
  • बिरला बूझे कोय।।
  • जीव ब्रम्ह परब्रम्ह नहीं,
  • सुंदर धरे सरूप।
  • कहें कबीर जाव घट एके,
  • ऐसा ख्याल अनूप।।
  • 117
  • निव्रिति परव्रिति दोय मारग,
  • तेहि अटका संसार।
  • कहं कबीर दोनों नहीं,
  • समझो बूझ विचार।।
  • 118
  • केहि कारण करनी करे,
  • कहां ब्रिच्छ फलचार।
  • सबे पडे भ्रम जाल में,
  • कहें कबीर पुकार।।
  • 119
  • मन जिवका संजोग तन,
  • मनके अद्भुत रूप।
  • जाग्रित स्वप्ना भरमावे,
  • लीला रचो अनूप।।
  • जाग्रित जाग्रत सांच है,
  • सोवत सपना सांच।
  • कहं कबीर मन ना बसे,
  • जहां तत्त नहिं पांच।।
  • मन यह जागत है नहीं,
  • यह मन यही सरीर।
  • रैयत होय तिनमें रहे,
  • कहें पुकार कबीर।।
  • 120
  • सबरा आतम आप हमारा,
  • इनमें नाहिं विसेख।
  • हम जाने सो यह गुन बूझे,
  • पावे पुरूष अलेख।।
  • जिन जाना यहि भेदको,
  • रहे सोई ठहराय।
  • कहं कबीर सो रहे निनारे,
  • लिया जिन्हें जम खाय।।
  • 121
  • यह करता बिन बूझ हेराना,
  • ताते भया अकास।
  • तत्त न मिला मत समुझा,
  • लीन्हा तहां निवास।।
  • जो गुन पावे तत्तको,
  • तत्ते जाये समाय।
  • कहं कबीर अमर तब होवे,
  • कहीं न आवे जाय।।
  • तन जियरा यह तेरा,
  • कबहुं नास न होय।
  • कहं कबीर सुरति मिले,
  • यह गुण बूझे सोय।।
  • 122
  • अस्थान न जाने जीवका,
  • भगति परी नहिं चीन्ह।
  • यही बिटम्बना भरमके,
  • जीव अकारथ दीन्ह।।
  • स्वारथ इनमें कोइ नहीं,
  • ताते रामहिं जान।
  • कहं कबीर यह भगती बूझले,
  • बहुर न रहे बंधन।।
  • 123
  • एके भया एक कहाया,
  • एके रहा समाय।
  • कहैं कबीर नहिं करता पाया,
  • जियरा दिया गंवाय।।
  • 124
  • अजमत कछु हांसी नहीं,
  • अजमत कर्म अधीन।
  • करामात करम चीन्हे,
  • सो ज्ञानी परबीन।।
  • करना हता सो कर चुका,
  • सब दिखलावे सोय।
  • कहं कबीर करता नहिं जाना,
  • अजमत करे क्या कोय।।
  • 125
  • करता पुरूष राम ते परे,
  • क्यों भूले भ्रम जाल।
  • कहें कबीर पूछों तोहि पंडित,
  • कांजी जीतो हाल।।
  • 126
  • आसपास धन तुलसी बिरवा,
  • तेहिबिच सालिग्राम।
  • हते देव पाथर भये,
  • यह करताके काम।।
  • 127
  • रैयतते राजा भया,
  • भया साहुते चोर।
  • राजाको वजीर गहि मारा,
  • जोर ते भया बिजोर।।
  • काग हंसकी पीठ पर,
  • नित होवे असवार।
  • भौजल सागर उतरके,
  • भया जग खेवनहार।।
  • 128
  • जो जन्मा दस बार प्रभु,
  • सो मनका औतार।
  • कहें कबीर बूझो तुम पंडित,
  • श्रीक्रिस्न ब्योहार।।
  • 129
  • जो न हता सो ब्रम्हैं कहा,
  • जीव भया तहं लीन।
  • कह कबीर जिन ब्रम्है जाना,
  • भये ज्ञानी परवीन।।
  • 130
  • धरती बेल पताल भय,
  • फल लागे आकास।
  • कह कबीर चात्रिक चारो जुग,
  • जल में मरा पियास।।
  • 131
  • बेल कुन हार।।
  • 136
  • जो बोया सोई भया,
  • ठांव ठांव पर नाम।
  • पिता पुत्र एके ज्ञानी,
  • जाव न निरगुन गांव।।
  • करता माया तीन गुण,
  • पांचों सबल शरीर।
  • न्यारे न्यारे देत दिखाई,
  • कहत पुकार कबीर।।
  • मन मायाऔ जीव गुण,
  • धोख कहें सब कोय।
  • गये नहीं औ सब गये,
  • कहत जगत सब रोय।।
  • 137
  • ब्रिच्छ एक तीन फल लागे,
  • बडहर बेर मकोय।
  • ब्रिच्छ कबीरा यह अदभुत,
  • उतपत परले होय।।
  • 138
  • धरती अम्मर आदि है,
  • अम्मर है पौन।
  • मैं तुहि पूछो पंडिता,
  • इनमें मूआ कौन।।
  • पांच तत्तका ब्रिच्छ है,
  • बीज साथ अंकूर।
  • कह कबीर तजो का जग,
  • रहत जगत भरपूर।।
  • 139
  • ब्रम्हा करि विस्नुहिं दीन्हा,
  • विस्नू महेसै दीन्ह।
  • सिवते पाया जगत सब,
  • जो माया लिख दीन्ह।।
  • जौन जुगत माया बतलाई,
  • तीनों चले सो चाल।
  • देखत प्रतिमा आपनी,
  • तीनों भये निहाल।।
  • 140
  • पांच तत्त गुन तीन तेहि,
  • मेट किये यह बात।
  • वेद बिचार सब पंडित,
  • कथा कहे दिन रात।।
  • करता आपन न चीन्हे,
  • नित उठ प बूझे नहीं,
  • जामे करे न बिचार।
  • कहें कबीर पढ पढ भूले, जेता यह संसार।। 147 बिन देखे करता भयो, बिन देखे लपटान। कहं कबीर जगत सब, वाही माहिं समाहि।। एक समाना सकलमें, सकल समाना ताहि। कविर समाना बूझमें,
  • जहां दूसरा नाहिं।।
  • 148
  • आपहिमें यह जग उरझााना,
  • भरम रहा यह पूर।
  • कहं कबिर यह अटपटा,
  • है नियरे पै दूर।।
  • 149
  • हमरा यह तन जीवरा,
  • हमरी सब है बेल।
  • करता पुरूष अविनासी,
  • सो वह रहा अकेल।।
  • हम करता जीव जग मारे,
  • हम करता भय काज।
  • कहें कबीर हमे जो चीन्हे,
  • ताका अबिचल राज।।
  • 150
  • आंगन बेल अकाश फल,
  • अनब्याईका दूध।
  • ससा सींगका धन ककरी,
  • रमै बांझका पूत।।
  • खोजत खोजत दिन गया,
  • मिला न निरगुन वीर।
  • षट दरशन पाखंड छानवे,
  • रहे त्रिय देवन तीर।।
  • 151
  • लै पुरान सब को समझावें,
  • सबहीं लीना मान।
  • कहें कबीर चला सब कोई,
  • अंधेरेकी पहिचान।।
  • 152
  • तीन लोक देख हम आये,
  • पाया न जमपुर गांव।
  • पंडित भरम उपराजिया,
  • राखा जमपुर नाम।।
  • जिनते जम यह उपजा,
  • तिनको लीन्हेसि खाय।
  • कहं कबीर सोई जन बांचे,
  • बापे चीन्हे धाय।।
  • 153
  • बीज ब्रिच्छ एक साथहै,
  • नजहिं देखे कोय।
  • तैसहिं जीव रू साज सब,
  • आग पाछ ना होय।।
  • 154
  • तीरथ गये एक फल,
  • साध मिले फल चार।
  • सद्गुरू मिले अनेक फल,
  • कहें कबीर पुकार।।
  • 155
  • जेहि बन सिंह ने संचरे,
  • पंछी बैठ न डार।
  • सो वन कविरन ढया,
  •  सिंह समाध बिचार।। ओंकार नाद यक माया, तहं लागे गुन तीन। तामे अटका जगत सब, भया वहीं लौलीन।।
  •  156 साखा पात सींचे सब, 
  • हरियर होय सुखाय।
  •  कविरा सींचे मूलके,
  •  डार पात हरियाय।।
  •  आस लाय सिंचत विरवा,
  •  जाके फल नहिं पात।
  •  मोहि निसदिन संसा,
  •  दिन दिन सो हरियात।।
  •  157 जिसका करता और है,
  •  निराकार नहिं होय।
  •  जो उपदेश दियो सद्गुरूने,
  •  जगत कहे सब रोय।।
  •  अमर तखत अडिआसले,
  •  पिंड झरोखे नूर।
  • जाके दिलमें मैं बसूं,
  • सैना लिये हजूर।।
  •  
  • 158
  • आगु आगु पंडित चले,
  • पाछे लागु संसार।
  • कविरा सेवक सो भया,
  • पायाजिन निरंकार।।
  • 159
  • काजी पंडित पच मरे,
  • पाये गांव न ठांव।
  • कबीरामोहि अचंभा,
  • नाहिं धरायो नाम।।
  • नाम न पाये गांवका,
  • रहे नाहिं ठहराय।
  • कविरा लखे बिन हरिके,
  • आपा दिया गंवाय।।
  • 160
  • कर बंदगी बिवेककी,
  • भेष धरे सब कोय।
  • वह बंदगी बहिजान दे,
  • जहं शब्द विवेक न होय।।
  • 161
  • पिता न पाया पुत्र ने,
  • परा भरम जी माहिं।
  • बहुमते चित्त लगाइबो,
  • ताते पहुंचत नाहिं।।
  • हती एककी भई अनेककी,
  • बेस्या बहुत भतारि।
  • कहें कबीर काके संग जरि है,
  • बहुत पुरूष की नाहिं।।
  • 162
  • टेक न कीजे बावरे,
  • टेक माहिं है हानि।
  • टेक तजे सुख पाइये,
  • कहे कबीर निदान।।
  • टेक करी रावन गये,
  • कंस भया निरबंस।
  • कविरा छांडो टेक तुम,
  • बूझ बचावो हंस।।
  • 163
  • जहं देखा तंह रामको,
  • बिन यक राम न कोय।
  • बातन हमें जगत प्रबोधे,
  • बातन राम न होय।।
  • 164
  • देखा देखी सब जग भरमा,
  • मिला न सद्गुरू कोय।
  • कहें कबीर कर कर नित्त संसय,
  • जियरा डारा खोय।।
  • 165
  • बिन तन कोई लखे न जियरा,
  • बिन तन झूठा रूप।
  • कहें कबीर झूठा किन्ह पंडित,
  • ऐसा ख्याल अनूप।
  • 166
  • सीतै मिल सीतल भया,
  • सीतै सित अधिकात।
  • सीतल जीव विनासिया,
  • सीतलकी दो बात।।
  • 167
  • गहना एक कनकते गहना,
  • नाम अनेक धराया।
  • कहें कबीर कंचनका भूषण,
  • एक भया जब ताया।।
  • 168
  • ब्रम्हा विस्नू महेश्वर,
  • असुर मुनी सुर देव।
  • गरा गये,
  • झगरा तउ न छूट।
  • यह पंडित सब जग भर्भावे,
  • कहे कबीर सब झूठ।।
  • 173
  • जात पात जिन छोडो,
  • छोडो गांव न ठांव।
  • शब्द हमारा न छोडो,
  • जनि फेर धरावो नाम।।
  • षट दरशन भूले जात पांत तज,
  • मिला न सद्गुरू कोय।
  • कहें कबीर भर्म उपजा,
  • थित काहे ते होय।।
  • 174
  • एक एक ते हौ य नहीं,
  • जो पै दूसर नाहिं।
  • दूसर मिला एकै भया,
  • इसमें संसय नाहिं।।
  • 175
  • न्याय करे यह सोय जिन,
  • पाया पुरूष अलेख।
  • कहें कबीर सोई जिव मुकुत,
  • जिन यह किया विवेक।।
  • 176
  • दसों दिसा खाली परी,
  • सुन्न ब्रम्ह ठहरान।
  • कहें कबीर यह बूझ जगत की,
  • यहि ठहरा गुरूज्ञान।।
  • 177
  • आखंडिया झांई भई,
  • पंथ निहार निहार।
  • जीभडिया छाले परे,
  • अलख पुकार पुकार।।
  • 178
  • बीजक बतावे बित्तको,
  • जो विज्ञ गुप्ता होय।
  • शब्द बतावे जीवको,
  • बिरला बूझे कोय।।
  • 179
  • षट दरशन ।
  • कहें कबीर दीपक बिना,
  • अंधेरे परे न सूझ।।
  • 181
  • गुन टूटा बेराबाहा,
  • उठ गया खेवनहार।
  • औघट घाटी नर गया,
  • कासों कहों पुकार।।
  • फुलवा भार न ले सके,
  • कहें सखिन सो रोय।
  • ज्यों ज्यों भीजे कामरी,
  • त्यों त्यों भारी होय।।
  • 182
  • चिडंटी जहां न चढि सके,
  •  राई ना ठहराय।
  •  आवागमनकी गम नहीं,
  •  तहां सकल जग जाय।।
  •  183 स्वाद ना पाये कंदका
  • , सब कोइ करे बखान।
  •  मीठा मीठा जग कहे,
  •  मीठेमें भइ हानि।।
  •  बात पराई को कहे,
  •  परदा लखे न कोय।
  •  सहना छिपा पयार में,
  •  को कह बैरी होय।।
  •  184 साध बसें हरि भीतरे,
  •  हरि बस साधन मांझ।
  • कहें कबीर देश वह ऐसा,
  • जहां भोर नहिं सांझ।।
  • 185
  • वहां की आसा लायना,
  • झूठी यहां की आस।
  • ग्रह तज घर बन मांडिया,
  • जुग जुग फिरे निरास।।
  • 186
  • नीव के बिचले सब घर बिचला,
  • अब कदु नहीं वसाय।
  • कहें कबीर जो कोइ समझे,
  • तेहिको काल न खाय।।
  • 187
  • एके यह तन जीउरा,
  • एक ब्रिच्छ एक बेल।
  • कहें कबीर एक जो समझे,
  • एक अनंत अकेल।।
  • 188
  • पेडे मूल बिगाडिया,
  • सुत आगे भरमाय।
  • कहें कबीर जेहिका सब कीना,
  • तेहिका कछु न बसाय।।
  • आद भई अब नाहीं,
  • परा बीज पर खेत।
  • कहंे कबीर समझे नहिं कोई,
  • विरथा जीव मृगदेत।।
  • 189
  • मथुरा नगर भरम एक प्रानी,
  • कविराके उपदेश।
  • कहें कबीर वहां कोइ नहीं,
  • झूठा बहुत संदेश।।
  • 190
  • एक ब्रिच्छ बहु फल लगे,
  • कौन बडा को हीन।
  • जो जाहीमें संचरे,
  • सो ताही आधीन।।
  • 191
  • बिन संजोग भया कछु नहीं,
  • ऐसा दिया संदेस।
  • बिन संजोग जगत सब उपजा,
  • यह आया उपदेस।।
  • 192
  • बिन डांङै जग हांडिया,
  • सोरठ परिया डांड।
  • बाटनहारा लोभिया,
  • गुरू सो मिठी खांड।।
  • 193
  • राम रहे वन भीतर,
  • गुरूकी पूजी न आस।
  • कहें कबीर पांखड. सब,
  • झूठे सदा निरास।।
  • 194
  • निरगुन पुरूष सरगुनका थापा,
  • निरगुन बसा निनार।
  • निरगुन यह सब अटके,
  • कहत कबीर पुकार।।
  • 195
  • अपनी सुरत बिसरिके,
  • पढ पढ भया निरवान। जो जौन जाके बस परा, सो ताके आधीन।। 196 जीव ब्रम्ह पर ब्रम्ह ना, अरजन बरन शरीर। हिन्दू तुर्क दोउ मिल भूले, कहत पुकार कबीर।। 197 देव रिषी सुर औ गन गंधर्व, जच्छक किन्नर आद्। कहें कबीर सब वहीं समाने, कर गुरूवा सो बाद्।। 198 बिन बूझे धोखे गये,
  • तिरदेवा तिरलोक।
  • थित ना पकडी सृष्टि यह,
  • यही भयाजी सोक।।
  • बहते बहते औघट गये,
  • पाया घाट ना तीर।
  • बही सृष्टि सब जात है,
  • कासों कहें कबीर।।
  • 199
  • नारि वह अंग बिहूना,
  • सुत कन्या भई चार।
  • माता बिगडी सुतन ते,
  • पंडित लेहु बिचार।।
  • 200
  • नियरे रहा दूर अब भई,
  • भई वहांकी आस।
  • कहें कबीर गया तब तहवां,
  • फिरके चला निरास।।
  • 201
  • पांच चार जग लूटे,
  • कोई लिया न भेद।
  • जग पंडित भर्मावई,
  • पढ पढ चारों वेद।।
  •  बारह मांस युग चारो, 
  • नौ नायकके साथ।
  •  कहें कबीर किनहीं नहिं चीन्हा,
  •  झगरा चला जगहाथ।।
  • 202
  • बिना रूप बिन रेख बिन,
  • जगत नचावे सोय।
  • मारे जांचे जो नहीं,
  • ताहि डरे सब काये।।
  • डर उपजा जिय माहिं डरा,
  • डरते परा न चैन।
  • लेखा रामै देन है,
  • यही कहें दिन रैन।।

  • 203
  • सबके पीर मोहम्मद।
  • मोमन तिनके मुरीद।
  • दोस्त अल्लाहके भये।
  • और जहान नादीद।
  • 204
  • लिखा पे।
  • घर घर लागी आग।


  • 205
  • धोखे धोखे सब जग बीता।
  • दो अगुवाके साथ।
  • कहें कबीर पडे जो बिगारी।
  • अब काहे न आवे हाथ।

  • 206
  • देखो तत बिचारके
  • केहि घरमा है करतार।
  • कहें कबीर सदा तुझी में।
  • कैसे भया निनार।

  • 207

  • समुद्र समाना बुद में।
  • बूंद मध्य विस्तार।
  • कहें कबीर भेद करता का।
  • बूझो यह टकसार।

  • 208

  • सरवज्ञ ज्ञान प्रज्ञान नहीं।
  • देखो तत बिंचार
  • पछा पछीमें जन परो।
  • मानो कहा हमार
  • आदि अंत दो मत हैं।
  • तिनमें मत्ता अनंत।
  • कहें कबीर दोनोंके मध्य में।
  • देखो हमारा तंत।

  • 209
  • जो न्यारा सो बैरी तेरा।
  • माया ब्रम्हा करतार।
  • कहें कबीर समझो तुम झानी।
  • मानो कहा हमार।
  • तीन मारे तीन राखे।
  • आठ मारे आठ।
  • लौट हंसा नीर पीवे।
  • सुखमना के घाट।

  • 210

  • आसा झूठी मुक्ति की ।
  • झूठा पुरूष दरबार।
  • कहें कबीर खोजो तुम करता।
  • जिन ंाई झलके सुख करे।
  • पाडीजी की बाट
  • तन छूटे सो तन लहे।
  • आवागवन न होय।
  • कहें कबीर यह भरत है
  • ंयह वह मेटो दोय।

  • 212
  • तुर्की अरबी फारसी।
  • संस्कत उनमान।
  • अपनी अपनी भाषा।
  • सब कोई करे बखान।

  • 213

  • ऐसी जग की चाल।
  • मूल वस्तु माने नहीं।
  • भरम परा संसार।
  • माने जो जाही कही।
  • 214

  • बिना रूप बिना रेख बिन।
  • जगत नचावे सोय।
  • मारे जंाचे जो नहीं।
  • ताहि डरे सब कोय।
  • डर उपजा जियह माहिं डरा।
  • डरते परा न चैन।
  • लेखा रामै देन है।
  • यही कहें दिन रैन।

















































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