- 3-जहं नहिं तहं सब कछू,
- वहं की बांधी आस।
- कहें कबीर ये क्यों न त्रिपत,
- दोउकी एके प्यास।।
4-आप सबनमें होय रहा,
आपन भया निनार।
कहें कबीर एक बूझ बिन,
भटका सब संसार।।
5-राजा रैयत होइ रहा,
रेैयत लीन्हा पाजं।
रयत चाहा सोइ लिया,
ताते भया अकाज।
े मूसा चूंठी आस।।
6-महा गुनन की आगरी,
महा अपरबल नारि।
कहे कबीर यह बडा अचंभा,
व्याहत भई कुमारि
7-निरगुन आपन उन रचा,
लौट भई वह नार।
कहें कबीर अनखायके,
रचा पुरूष निरकार।।
8-निरगुण निराकार ठहरावा,
तिनहूं दिया उपदेश।
कहें कबीर त्रिगुन चले,
जहां न चंद दिनेस।।
9-गुरवा संग सब कोइ भटके,
करता परा न चीन्ह ।
कहें कबीर मनके भ्रम भूले,
गुरू सिक्ख जिव दीन
10-आगे आगे गुरू चला ,
जहां न ससि औ भान।
कहें कबीर पाछे चला,
गुरू में यहू समान।।
11-माता गुरू पुत्र भये चेला,
सुतको मंत्र दीन।
कहें कबीर माता को वचन,
सबहिन चित धर लीन।।
12-तिसका मंत्र सब जपे,
जिसके हाथ न पांव ।
कहे कबीरसो सुत माको,
दिया निरंजन नांव।।
13-जपते जपते जी गया,
काहू मिलिया नाहिं।
कह कबीर तड नाहीं समझे,
सब लागे वहि माहिं।।
14-बिस्व रूप सब साथ था,
बिस्वरूप यह सोय।
जैसे साज पीडकी,
आगे पाछे न होय।।
15- बहे बहाये जात थे,
लोक वेद के साथ।
बीचे सतगुरू मिल गये,
दीपक दीन्हा हाथ।।
16-तुझही में बस कुछ भया,
सब कुछ तुझही माहिं।
कहें कबीर सुन पंडिता,
तेहि ते अंते नाहिं।।
17-करता सब घट पूरना,
जगमें रहा समाय।
कहें कबीर एक जुगति बिन,
सब कुछ गया नसाय।।
18-आद अंत अमर हम देखा,
जीव मुवा नहिं कोय।
यह विश्व रूप ब्रम्हज्ञानी,
उतपत प्रलय न होय।।
19-मत भूलो ब्रम्हज्ञापनी,
लोक वेद के साथ ।
कहे कबीर यह बूझ हमारी,
सो दीपक लीजे हाथ।।
20-त्रिदेवा सुमरन लगे,
पूजा रचा ग्रंथ।
तिरिया गई पर पुरूष पै,
छोड आपना कंथ।
21-त्रिया कंत न माने,
कंता ठााय।
ब्र्रम्हा के प्रतीत भई,
बांधा वेद ग्रंथ।
22-प्रकट नैनन देखत नहीं,
परा वेद के पंथ।।
मायाते यह वेद भै,
वेद मध्य दोय तत्त।
23-निर्गुन सर्गुन दो बतलावे,
कहे नाहिं जो सत्त।।
24-महा माया भाठी रची,
तीन लोक बिस्तार।
कहें कबीर हम रहे निनारे,
पी माता संसार।
25ब्रम्हा पियत पिया सबकाहू,
करता अपन न चीन्ह।
कहें कबीर अब कहत न आवे,
विरंच इसारा कीन्ह।।
26-कब जैहो वहि देशवा,
जहां पुरूष निरंकार।
कहें कबीर हमहू ते कहियो,
जब होय चलन तुम्हारा।।
27-आगे नये तिन किनहुन कहिया,
अब तुम लीजो साथ ।
जो है तुम्हे भरोसवा,
गहो हमारा हाथ।।
28-त्रिय देवा जान्यों नहीं,
कौन रूप केहि देश।
अबहूं चेत समझ नर बौरे,
झूठा दिया उपदेश।।