पाँच पहर
धन्धे गया, तीन
पहर गया सोय ।
एक
पहर हरि नाम बिन,
मुक्ति
कैसे होय ॥
--> धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
कबीरा सोया
क्या करे, उठि
न भजे भगवान ।
जम
जब घर ले जायेंगे,
पड़ी रहेगी
म्यान ॥
शीलवन्त
सबसे बड़ा, सब
रतनन की खान ।
तीन
लोक की सम्पदा,
रही शील
में आन ॥
-->
दुर्लभ मानुष
जन्म है, देह
न बारम्बार ।
तरुवर
ज्यों पत्ती झड़े,
बहुरि न
लागे डार ॥
आय हैं सो
जाएँगे, राजा
रंक फकीर ।
एक
सिंहासन चढ़ि चले,
एक बँधे
जात जंजीर ॥
काल करे सो
आज कर, आज
करे सो अब ।
पल
में प्रलय होएगी,
बहुरि करेगा
कब ॥
माँगन मरण
समान है, मति
माँगो कोई भीख ।
माँगन
से तो मरना भला,
यह सतगुरु
की सीख ॥
माया मरी न
मन मरा, मर-मर
गए शरीर ।
आशा
तृष्णा न मरी,
कह गए दास
कबीर ॥
माबडा हुआ
तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी
को छाया नही फल लागे अति दूर
॥
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥