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मंगलवार, 20 अगस्त 2013

भरम की बांधा ई जगत, यहि विधि आवे जाय । मानुष जन्महिं पाय नर, काहेको जहॅडाय।।

24, फुलवा मार न लैसके,
 कहै सखिनसों रोइ।
ज्यों ज्यांे भीजै कामरी,
 त्यों त्यांे भारी होइ।।

25, सबै लोग जहॅडाइया,
 अनधा सबै भुलान ।
कहा कोइ नहिं मानही 
(सब) एकै माहि समान।।

26, सुमरिन करहू रामको,
 छाडहु दुखकी आस।
तरऊपर धरि चापि है,
 जस कोल्हू कोटि पचास।।

27, संशय सावज शरीर में,
 संगहि खेलै जुहारि।
ऐसा घायल बापुरा,
 जीवन मारे झारि।।

28, सुमीरण करहु रामको,
 काल गहे है केश।
ना जानों कब मारिहै, 
क्या घर क्या परदेश।।

29, इच्छोके भव सागरै,
 वोहित राम अधार।
कहॅ कवीर हरिशरण गहु,
 गो बछखुर विस्तार।।

30, मै सिरजों मै मारहू
, मै जारो मैं खाॅव।
जल थल मैही रमि रहौ,
 मोर निरंजन नाॅव।।

31, मन्दिर तो है नेहका, 
मत कोई पैठे धाय ।
जो कोइ पैठे धायके, 
बिन शिरसेती जाय।।

32, भरम की बांधा ई जगत,
यहि विधि आवे जाय ।
मानुष जन्महिं पाय नर,
काहेको जहॅडाय।।