सोमवार, 24 जून 2013

-ब्रम्हा यह समझे नहीं, बिना बीज कछु नाहिं। कहें कबीर जो उन कहो, सो राखो मन माहि।।




1- जिनके धन सतनाम है,
 तिनका जीवन धन्न। 
तिनको सतगुर तारहीं, 
बहुर न धरई तन्न।। 


2- कबिरा महिमा नामकी, 
कहता कही न जाय।
 चार मुक्ति औ चार फल,
 और परमपद पाय।।


 3- नाम सत संसार में,
 और सकल है पोच।
 कहना सुनना देखना,
 करना सोच असोच।।


 4- सतलोकै सब लोक पति,
 सदा समीप प्रमान।
 परमजोत सो जोत मिलि,
 प्रेम सरूप समान।।




 5- सुख सागर सुख बिलसई,
 मानसरोवर न्हाय।
 कोट कामसी कामिनी,
 देखत नैन अधाय।।


 6- महिमा बडी जो साध की, 
जाके नाम अधार।
 सतगुर केरी दया ते, 
उतरे भव जल पार।। 


7- कहैं कबिर विचार के,
 तब कुछ किरतम नाहिं।
 परमपुरूष तहॅं आपही,
 अगम अगोचर माहिं।। 


8- कहै कबीर विचार के, 
जाके बरन न गांव।
 निराकार और निर्गुना,
 है पूरन सब ठांेेव।।


 9- कहैं कबीर विचार के, 
क्रत्रिम करता नहिं होय।
 यह बाजी सब क्रत्रिम है,
 सांच सुनो सब कोय।।


 10-सात द्वीप नौ खण्ड में,
 औ इकीस ब्रम्हाड।
 सतगुरू बिना न बाचिहौ,
 काल बडो परचंड।।


 11-गुरू चरणोदक अनन्त फल,
 हमते कही न जाय।
 मनकी पुरवै कामना,
 लेवे चित्त लगाय!! 


12-सतगुरू समान को हितू,
 अन्तर करो विचार।
 कागा सो हंसा करै,
 दरसावेै ततसार।।


 13-गुरू महिमा ग्रंथ यह
, कहै कबीर समझाय।
पाप ताप सब ही हरै,
अमर लोक लैे जाय।।

14-यहि संयोग मूवा सब कोई,
कीन्ह न कोइ विचार।
कहें कबीर चारो युग करता,
सब में फिरा पुकार।।


15-आस करे सुन्य नगरकी,
जहां न करता कोय।
कहें कबीर बूझो जिव अपने,
जाते भरम न होय।।


16-सब जग भूला एक न भूला,
भूला सब संसार।
कहें कबीर बूझो तुम ज्ञानी,
करके अपन विचार।।


17-तिर देवा गये जात न जाने,
गये साधक अवधूत।
कहें कबीर पहिचानो ज्ञानी,
पांचो अरतम भूत।।


18-यह दुबधा मिल दुचित भये,
कैसे न चीन्हे मूल।
कहें कबीर तिरगुन गुणा,
भूले यही सबन की भूल।।

19-सब जग ूठ सनेह।।
चेतो किन तुम चेतो,
परमहंस संयोग।
कहैं कबीर करता नहिं,
एते पांचों में सुख भोग।।


21-देव पैगम्बर रिषि मिलि,
इनही माना मूल।
निराकार में यह सब अटके,
यही सबनकी भूल।।



22-हमरा यह सब कीन कराया,
हमहीं बस परगांव।
कहे कबीर सबको जगह,
हमको नाही ठॉव।।



23-हमरे काज हम सब कीना,
बसा पुरूष इक आय।
रूप न रेखा अंग बिहूना,
घट घट रहा समाय ।।



24-अमिट वस्तु सब मेटे,
जो मेटे सो प्रमान।
मिटतन कीन्ह सनेहरा,
आपइ मिटे निदान।।


25-पैडें सब जग भूलिया,
कहैं लग कहौं समुझाय।
कहें कबीर अब क्या कीजे,
जगते कहा बसाय।।


26-ब्रम्हा यह समझे नहीं,
बिना बीज कछु नाहिं।
कहें कबीर जो उन कहो,
सो राखो मन माहि।।


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