kabir ke dohe

कबीर का मनुष्य ज्ञान की सहायता से दुर्बलताओ को मुक्त करने वाला प्राणी था कबीर के प्राणी की पहचान कुल से नही बल्कि कर्म से होती थी । यही कारण है कि उनका ईश्वर के सबंध में कहना था कि न मैं देवल में, न मै मस्जिद में, न काबे-कैलाश में, न तो कौने क्रिया कर्म में, न ही योग-बैराग में, मैं सब श्वांसों की श्वास में । महान् कबीर भारत के वे सुकरात हैं, जिन्होंने जहर के प्याले में बैठकर अमृत की वर्षा की ।

बुधवार, 26 जून 2013


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  • // दोहे //2 (1)
  • अंतर ज्योति शब्द यक नारी। (1)
  • उमेश गुप्ता द्वारा प्रकाशित व्यंग्य संग्रह की सूची (1)
  • कबीर एक क्रांतिकारी कवि (1)
  • कबीरा जपना काठ की (1)
  • काहेको जहॅडाय।। (1)
  • कुटिल वचन सबसे बुरा (1)
  • क्या दिख्लावे मोय । ह्रदय नाम न जपेगा (1)
  • गुरू महिमा (1)
  • गुरू महिमाको भेव। (1)
  • घटकी जानत नाहिं कहे कबीर जो घट लखे (1)
  • जहाँ कुंजड़ों की हाट । बांधो चुप की पोटरी (1)
  • जारि कर तन हार । साधु वचन जल रूप (1)
  • तीन पहर गया सोय । एक पहर हरि नाम बिन (1)
  • तीन लोक बिस्तार। कहें कबीर हम रहे निनारे (1)
  • तो फिर घट ही माही।। (1)
  • दुख काहे को होय ॥ (1)
  • दुख में सुमरिन सब करे (1)
  • पढ पोथी भटका मारत (1)
  • पाँच पहर धन्धे गया (1)
  • पी माता संसार। (1)
  • फिरा न मन का फेर । कर का मन का डार दें (1)
  • बरसे अमृत धार ॥ (1)
  • भरम की बांधा ई जगत (1)
  • भरम परा संसार।। (1)
  • मन का मनका फेर ॥ (1)
  • मनते दस औतार। ब्रम्हा विस्नू धोखे गये (1)
  • महा माया भाठी रची (1)
  • माया ते मन उपजा (1)
  • माला फेरत जुग भया (1)
  • मुक्ति कैसे होय ॥ (1)
  • यह जपनी क्या होय ॥ (1)
  • यहि विधि आवे जाय । मानुष जन्महिं पाय नर (1)
  • लागहु अपनी बाट ॥ (1)
  • लेखक की कलम से (1)
  • सुख मे करे न कोय । जो सुख मे सुमरिन करे (1)
  • हीरा वहाँ न खोलिये (1)
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  • कबीर एक क्रांतिकारी कवि --------------------- कबीर का मनुष्य ज्ञान की सहायता से दुर्बलताओ को मुक्त करने वाला प्राणी था जिसने बाहरी आंडबरांे का विरोध कर अपने भीतर झांककर ईश्वर की प्राप्ति की थी । कबीर के प्राणी की पहचान कुल से नही बल्कि कर्म से होती थी । यही कारण है कि उनका ईश्वर के सबंध में कहना था कि न मैं देवल में, न मै मस्जिद में, न काबे-कैलाश में, न तो कौने क्रिया कर्म में, न ही योग-बैराग में, मैं सब श्वांसों की श्वास में । महान् कबीर भारत के वे सुकरात हैं, जिन्होंने जहर के प्याले में बैठकर अमृत की वर्षा की ।
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  • कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि कर तन हार । साधु वचन जल रूप, बरसे अमृत धार ॥
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  • कबीरा जपना काठ की, क्या दिख्लावे मोय । ह्रदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ॥
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