बुधवार, 31 जुलाई 2013

लेखक की कलम से

                    लेखक की  कलम से

                                                 व्यंग्य लेखन से मेरा उद्देश्य लोगों का मजाक उड़ाकर उन्हें हसी का पात्र बनाकर सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करना नही है । समाज में कुछ ऐसी बातें व्याप्त है, जो आम आदमी ठगे जाने के बाद भी समझ नहीं पाता है और दिन प्रतिदिन पिसता जाता है । ऐसी बातों को अपने लेखों ओर व्यंग्यों के माध्यम  से लोगों तक पहुंचाना ही मेरा उद्देश्य रहा है । 


                                                इसके अलावा ऐसे लोगों को भी दर्पण दिखाना रहा है जो छल कपट चोरी ,बेईमानी करने के बाद भी समझते है कि उन्होने कुछ नहीं किया है और उनके बारे में लोगों को कुछ नहीं मालूम है, जबकि समाज में इसके विपरीत उल्टा असर रहता है । 


                                                      हमारा भारतीय समाज दहेज प्रथा, जातिप्रथा, धार्मिकता, अंधविश्वास, गरीबी, बेकारी आदि आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, बुराईयों से ग्रस्त है, जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित, देश का आम आदमी है और आम आदमी को ही अपने लेखों का नायक बनाकर प्रायः व्यंग्य लिखे गये हैं । जिसमें अधिक से अधिक समस्याओं को हल सहित उठाये जाने का प्रयास किया गया हैं।


                                                       आस पास में व्याप्त विषमताओं चेहरे पर चेहरे लगाये, रंग बदलते चेहरे को देखकर उन्हें सरल सीधे शब्दो में बिना लाग लपेट के व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है और व्यंग्य ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा अपने और अपनो पर चोट करके लोगो को समझाया जा सकता है ।

                                                 मुझे व्यंग्य लेखन की प्रेरणा संत कबीर, हरिशंकर, परसाई, चाणक्य, जैसे महान लोगों से मिली है ,जिन्होने अल्प शब्दो में  ही गाकर में सागर भरकर लोगों को सामाजिक विशेषताओं की ओर सोचने को मजबूर  किया है। मेरे द्वारा युवाओं में व्याप्त समस्याओं ,छेड़खानी, प्रेम, फिल्म के प्रति आकर्षण की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया गया है । वहीं प्रदूषण, मंहगाई, इलाज, बीमारी ,गरीबी के कारणो की तरफ भी लोगों का ध्यान खींचा गया है । नारी जाति में व्याप्त समस्याओं पर विचार किया गया है और समाज में व्याप्त दोहरे मापदंड आर्थिक विषमताओं का उल्ल्ख किया है।

                                                  बी.एस.सी. एम.ए. (अर्थशास्त्र) में करने के बाद पत्राचार में पत्र कारिता का एक वर्ष का कोर्स और उसके बाद एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की और इस बीच कई लेख, वयंग्य,फीचर,निबंध देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए और समस्थाओं द्वारा पुरूष्कृत भी किये गये । उसके बाद वेलेन्टाइन-डे-कानून के रूप में लोगों के मध्य किताब के रूप में आने का पहला प्रयास है
                    

kabir









कबीर एक क्रांतिकारी कवि --------------------- कबीर का मनुष्य ज्ञान की सहायता से दुर्बलताओ को मुक्त करने वाला प्राणी था जिसने बाहरी आंडबरांे का विरोध कर अपने भीतर झांककर ईश्वर की प्राप्ति की थी । कबीर के प्राणी की पहचान कुल से नही बल्कि कर्म से होती थी । यही कारण है कि उनका ईश्वर के सबंध में कहना था कि न मैं देवल में, न मै मस्जिद में, न काबे-कैलाश में, न तो कौने क्रिया कर्म में, न ही योग-बैराग में, मैं सब श्वांसों की श्वास में । महान् कबीर भारत के वे सुकरात हैं, जिन्होंने जहर के प्याले में बैठकर अमृत की वर्षा की ।

                        कबीर एक क्रांतिकारी कवि

                             संत कबीर एक महान क्रांतिकारी कवि थे। जिन्होंने बिना लाग लपेट के समाज में व्याप्त कुरीतियों, बुराईयांे को उजागर किया था। उन्होंने समाज में व्याप्त जाति, धर्म, वर्ग आदि के मध्य विद्यमान भेदभाव को बडी सहजता से व्यक्त किया था। 

                              उनकी वाणी बहुत सरल, सुन्दर, आम बोलचाल की भाषा में थी। उन्होने क्षेत्रीय भाषा अपनाकर दैनिक बोलचाल के शब्दो का प्रयोग अपनी वाणी में किया था।


                                उनके दोहा, साखी, बीजक, उलट, बंसिया आज भी शोध का विषय है। एक पंक्ति में एक ग्रंथ की बात कह देना उनकी विशेषता थी बडी आसानी से उन्होने अंधविश्वास, जातिय भेदभाव, छुआछूत, पांखड जैसी सामाजिक बुराईयो को व्यक्त किया था । यही कारण है कि आज कई कवि आकर चले गये परन्तु कबीर अपने स्थान पर अडिग हैं । उनके आसपस दुनिया का कोई कवि नहीं लगता है।



                                       कबीर के दोहो को साखी कहा जाता है । साखी शब्द साक्षी का प्रतीक है । साक्षी का अर्थ है सामने होना । महान कबीर ने अपने जीवन में जो देखा जो सुना जो अनुभव किया उसी को अपनी साखियों में व्यक्त किया, जिन्हें दोहा भी कहा जाता है । इसी कारण आज साखी हिन्दी साहित्य में ज्ञान के कोष के रूप में जानी जाती है ।



                                               भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा के प्रमुख कवि कबीर का जन्म काशी में हुआ और निर्वाण मगहर में प्राप्त हुआ । उन्होने कोई प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। आस-पास के अनुभव से ज्ञान प्राप्त किया था। आस-पास की अव्यवस्था शब्दों में व्यक्त कर महानता प्राप्त की थी ।



                                          संत कबीर भक्तिकालीन एक मात्र कवि थे जिन्होने राम-रहीम के नाम पर चल रहे पाखंड, भेद-भाव, कर्म-कांड को व्यक्त किया था। उस समय राज सत्ता, प्रभु सत्ता के नाम पर व्याप्त डर के कारण आम आदमी जो कहने से डरता था, उसे विचारक कबीर ने धूम धडाके से कहा ।



                                            दार्शनिक कबीर का आदर्श मनुष्य धर्मिक, सामाजिक भेदभाव से मुक्त प्राणी था जो पत्थर नहीं पूजता था, ईश्वर के नाम पर मुर्गे जैसी बांग नहीं देता था। छोटे-बडे सभी उसके लिए बराबर थ्ज्ञे । जो कर्मवान था, ज्ञान का पुजारी था, अपने अंदर ईश्वर को खोजता था। उसके नाम की माला नहीं फेरता था बल्कि जुबान से भक्ति करता था, वह संकीर्णताओ से दूर था।


                                    कबीर का मनुष्य ज्ञान की सहायता से दुर्बलताओ को मुक्त करने वाला प्राणी था जिसने बाहरी आंडबरांे का विरोध कर अपने भीतर झांककर ईश्वर की प्राप्ति की थी ।



                                    कबीर के प्राणी की पहचान कुल से नही बल्कि कर्म से होती थी । यही कारण है कि उनका ईश्वर के सबंध में कहना था कि न मैं देवल में, न मै मस्जिद में, न काबे-कैलाश में, न तो कौने क्रिया कर्म में, न ही योग-बैराग में, मैं सब श्वांसों की श्वास में ।



                                      कबीर जन भाषा की निकट कवि थे । सरल ढंग से कठिन चिंतन को व्यक्त करने की अद्भूत शक्ति उनमें थी । वे एक शब्द में सम्पूर्ण दर्शन ज्ञान उडेल देते थे, यही कारण हे कि दिगम्बर के गांव में क्या धुबियन का काम ’’कहने वाला कवि केवल, कबीर हो सकता है । 



                                           ज्ञान की महिमा का बखान करने वाला कबीर का कहना था कि जैसे तलवार का महत्व होता है मयान का नहीं वैसे ही साधु के ज्ञान की परख होती है, उसकी जातिकी परख नहीं होती ।


                          कबीर हिन्दी साहित्य के पहले व्यंग्यकार है जिन्होंने अपनी वाणी में सामाजिकर्, आिर्थक, धार्मिक जाति विरोधाभासों को व्यक्त किया है । यही कारण है कि वे आज व्यंग्यकारो के आदर्श है । 



        महान् कबीर भारत के वे सुकरात हैं, जिन्होंने जहर के प्याले में बैठकर अमृत की वर्षा की ।