गुरुवार, 27 मई 2010

KABIR KE vani कबिरा महिमा नामकी, कहता कही न जाय। चार मुक्ति औ चार फल, और परमपद पाय।।


दोहे-


1- जिनके धन सतनाम है,  तिनका जीवन धन्न।  तिनको सतगुर तारहीं,  बहुर न धरई तन्न।।
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1- जिनके धन सतनाम है,
तिनका जीवन धन्न।
तिनको सतगुर तारहीं,
बहुर न धरई तन्न।।


2- कबिरा महिमा नामकी,
कहता कही न जाय।
चार मुक्ति औ चार फल,
और परमपद पाय।।



3- नाम सत संसार में,
और सकल है पोच।
कहना सुनना देखना,
करना सोच असोच।।



4- सतलोकै सब लोक पति,
सदा समीप प्रमान।
परमजोत सो जोत मिलि,
प्रेम सरूप समान।।



5- सुख सागर सुख बिलसई,
मानसरोवर न्हाय।
कोट कामसी कामिनी,
देखत नैन अधाय।।


6- महिमा बडी जो साध की,
जाके नाम अधार।
सतगुर केरी दया ते,
उतरे भव जल पार।।




7- कहैं कबिर विचार के,
तब कुछ किरतम नाहिं।
परमपुरूष तहॅं आपही,
अगम अगोचर माहिं।।



8- कहै कबीर विचार के,
जाके बरन न गांव।
निराकार और निर्गुना,
है पूरन सब ठांव।।


9- कहैं कबीर विचार के,
क्रत्रिम करता नहिं होय।
यह बाजी सब क्रत्रिम है,
सांच सुनो सब कोय।।

10-सात द्वीप नौ खण्ड में,
औ इकीस ब्रम्हाड।
सतगुरू बिना न बाचिहौ,
काल बडो परचंड।।

11-गुरू चरणोदक अनन्त फल,
हमते कही न जाय।
मनकी पुरवै कामना,
लेवे चित्त लगाय!!

12-सतगुरू समान को हितू,
अन्तर करो विचार।
कागा सो हंसा करै,
दरसावेै ततसार।।

13-गुरू महिमा ग्रंथ यह,
कहै कबीर समझाय।
पाप ताप सब ही हरै,
अमर लोक लैे जाय।।

14-यहि संयोग मूवा सब कोई,
कीन्ह न कोइ विचार।
कहें कबीर चारो युग करता,
सब में फिरा पुकार।।

15-आस करे सुन्य नगरकी,
जहां न करता कोय।
कहें कबीर बूझो जिव अपने,
जाते भरम न होय।।

16-हमरा यह सब कीन कराया,
हमहीं बस परगांव।
कहे कबीर सबको जगह,
हमको नाही ठॉव।।


17-हमरे काज हम सब कीना,
बसा पुरूष इक आय।
रूप न रेखा अंग बिहूना,
घट घट रहा समाय ।।

18-अमिट वस्तु सब मेटे,
जो मेटे सो प्रमान।
मिटतन कीन्ह सनेहरा,
आपइ मिटे निदान।।


19-पैडें सब जग भूलिया,
कहैं लग कहौं समुझाय।
कहें कबीर अब क्या कीजे,
जगते कहा बसाय।।

20-ब्रम्हा यह समझे नहीं,
बिना बीज कछु नाहिं।
कहें कबीर जो उन कहो,
सो राखो मन माहि।।